" देख के तुम्हे,होश खो बैठे, वो खिलता हुआ कमल लगतें हो,
खूबसूरती की उम्दा मिसाल हो ,मुझे तुम ताजमहल लगते हो,
सुध बुध खो के अपनी ,हम तो बस तुम्हे निहारा करते हैं ,
कभी लगते हो ख़्वाब सा,कभी दिल की मेरे हलचल लगते हो,
चाँद भी शरमाया है , जिसकी देखकर सूरत प्यारी ,
मेरे उलझे हुए प्रेम का जैसे, मुझे तुम हल लगते हो,
सजाकर लिखूँ मैं तुम्हे दिल के कोरे काग़ज़ पर ,
किसी शायर की लिखी , उम्दा ग़ज़ल लगते हो ,
बेख्याली में भी ख़्याल तेरा है ,तुझसे प्यार इतना गहरा है,
भीड़ में भी तुम ही तुम ,तन्हाई में भी महफ़िल लगते हो।।
-पूनम आत्रेय
©poonam atrey
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