तेरा वजूद मेरे टूटते हुए सब्र को नई आशा देता है,
निरर्थक सी मेरी तस्वीर को एक परिभाषा देता है|
रात के पसरे अंधियारे के सन्नाटे में सिमट कर जब कभी बुझने लगता हूं.......
ए "चांद" तू फैला कर बाहें अपनी मुझे जगमगाने की अभिलाषा देता है ||
©' मुसाफ़िर '
#Moon