बीत गया वो पल
जब शाम सज़ा करती थी
गांव की सुबह वो
लालिमा से हुआ करती थी
चिड़ियों का वो शोर
सुबह गूंज उठा करता था
बैठकें जहां चौराहे पर होती थी
हाथो में लिए चाय की प्याली
बातों की वो महफिल लगती थी
फिर खेतों को प्रणाम किया करते
पहला हल चला धरती से वरदान लिया करते
हल्की रोशनी फिर बच्चों को जगाती
भर जाती गलियों में बच्चों की किलकारी
किताबो में रह गईं वो बात अभी
बिखर गई वो सुकून की रातें सभी
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