सिर्फ ख्वाब होते तो क्या बात होती,
तुम तो ख्वाहिश बन बैठे…….वो भी बेइंतहा।
काश एक ख्वाहिश पूरी हो जाये इबादत के बगैर,
कोई मुझे भी चाहने लगे मेरी इज़ाज़त के बगैर।
मुझे मालूम है कि ये ख्वाब झूठे हैं और ख्वाहिशें अधूरी हैं,
मगर जिंदा रहने के लिए कुछ गलतफहमियां जरूरी हैं।
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि, हर ख़्वाहिश पे दम निकले,
बहुत निकले मेरे अरमान, लेकिन फिर भी कम निकले । (ग़ालिब)
©Praveen mishra
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