वो दूरी हमसे ना बढ़ा ले
डर लगता हैं।
वो खुद को आज ना मिटा दे,
डर लगता हैं।
ये मोहब्बत जो मेरा बार बार,
इम्तेहान लेता है।
ख़ुद को राख ना बना दे,
डर लगता है।
मोहब्बत में अब होश ना गंवा,
तसल्ली रख इरादे नापाक ना बना ले,
डर लगता है।
अक्सर इश्क़ में नासमझी रहता,
ख़ुदख़ुशी को कही गले ना लगाले,
डर लगता है।
अभी भी लौट आओ अपने अटल इरादों से,
कही मौत को गले ना लगा ले
डर लगता है।
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©Manzoor Alam Dehalvi
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