तेरी मोजूदगी का एहतराम कर भी लूं
जब होगा रूबरु तो ये ज़ज़बात कहाँ छुपाऊंगा
एक उमर लेके आना
मैं खाली किताब ले आउंगा
तोड़ कर लाने के वादे नहीं
मैं अपनी कलम से सितारे सजाऊंगा
मेरी सब्र की इंतहा पर शक कैसा
मैंने तेरे आने जाने पे ता उमर लिखी है
ज़मीन पे कोई खास नहीं मेरा
तू एक बार क़ुबूल कर में अपने
गवाहों को आसमा से बुलवाउंगा
एक शायरी लिखी है
कभी मिलोगे तो सुनाऊंगा।
कई रात गुजारी है अंधेरे में
तुम थोड़ा सा नूर ले आओगे
मेरे तकिये पीले हैं आंसुओं से,
क्या तुम मुझे अपनी गोद में सुलाओगे,
सुना है बाग है तुम्हारे आंगन में,
मेरे ला हासिल बचपन को वो झूला दिखाओगे ??
मैने खोया है अपनी हर प्यारी चीज को,
में अपनी क़िस्मत फ़िर भी आजमाऊंगा
एक शायरी लिखी है
कभी मिलोगे तो सुनाऊंगा ।
©Shivaye OM
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