I am alone आभासी स्मित अधरों पर रख, मन की पीर दबा लेता हूँ!
बात तुम्हारी, याद तुम्हारी, तुम को ही दुहरा लेताहूँ!!
गीत कभी, कुछ ग़ज़लें लिखता, मेरे शब्द तुम्हारी बातें!
होता हूँ जब कभी अकेला, उन गीतों को गा लेता हूॅं!!
पीर पराई कौन समझता, किस को अपने घाव दिखाऊँ!
लोग हँसेंगे यही सोच कर, मरहम स्वयं लगा लेता हूँ!!
जो थे अपने वही पराये बन कर दर्द दिया करते हैं!
"अपने तो अपने होते हैं",कह कर मन बहला लेता हूँ!!
प्यास कहाँ बुझती सपनों की, चाहे घर हो या मदिरालय,
टूटे सपनों की सरिता में अपनी प्यास बुझा लेता हूँ!!
मैंने अपने ही हाथों से खींची स्वयं भाग्य की रेखा!
जब जैसा जी करता वैसी, रेखा नई बना लेता हूँ!!
चाँद सितारों से क्या लेना, मेरे मन के अंधेरों को!
तेरी यादों की बाती ले दीपक एक जला लेता हूँ!!
मन का मरुथल महक उठा है, तेरे गीतों के समीर से,
परम-पुनीत प्रेम-जल-सिंचित मन- उपवन सरसा लेता हूँ!!
-भूषण-
©Vidya Bhushan Mishra
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