गुरु बिन शिष्य क्या कुछ भी नहीं,
गुरु बिन ज्ञान क्या, कुछ भी नहीं।
गुरु से ही सार्थक हो पाते हैं शब्द सारे,
गुरु बिन वर्ण क्या, कुछ भी नहीं।
गुरु नाम के धागे से मोती की माला पिरोई,
गुरु बिन माणक भी पत्थर और कुछ नहीं।
गुरु नाम से ही मिल सके सफलता,
गुरु बिन मानव कुछ भी नहीं।
कोरे कागज पर भरे रंग वो चित्रकार गुरु,
गुरु बिन जीवन क्या, कुछ भी नहीं।
©Tanya Sharma (लम्हा)
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