तन्हाई "तन्हाई"
तन्हाई शब्द से ही अकेलेपन का बोध होता है, पर अगर गहराई से सोचें तो कितना कुछ बता और सिखा देती है, तन्हाई। जब हम तन्हा होते हैं तो वास्तव में हर करीबी रिश्ता पास होता है। उनसे जुड़ी हर याद ताजा हो जाती है और मन तन्हा होकर भी उसी पुराने समय की आगोश में चला जाता है, जहां से कभी खुशियां तो कभी गमों की सौगात मिली थी। उन्हीं सब को आज इस लम्हे में जी रहे होते हैं हम, जब भी तन्हा होते हैं।
इन्हीं तन्हाइयों में कभी होठ मुस्कुराने लगते हैं तो कभी आंख नम हो जाती है, कभी अचानक किसी का स्पर्श याद आता है तो कभी रूठना-मनाना छेड़ जाता है। इन्हीं एहसासों के चलते सांसे तेज हो जाती हैं और अकेलापन कहीं ओझल ही हो जाता है, मानो तब तो सिर्फ बिताये पल ही हावी होते हैं और दिलो-दिमाग में कुछ बीते पलों को तो फिर से जीवित करने की एक इच्छा ही हो जाती है, जो कि इतनी प्रबल होती है कि हम न जाने कितनी योजनाओं का निर्माण तक कर डालते हैं जिससे उन्हें जीना संभव हो सके। और कुछ पलों को हमेशा के लिए अपनी जिंदगी से निकल कर फेंक देने के लिए बेचैन हो उठते हैं। यही नहीं, इतनी ताकतवर होती है ये तन्हाई, कि खुद को अगर ढूंढने निकलो तो कई दिन गुजर जाएं!
आखिर, क्यों इसे हम हमेशा अपनी कमजोरी ही समझते हैं, जबकि यह हमारी सबसे बड़ी ताकत बन सकती है। हमें फिर से कुछ नया और रोमांचक करने की प्रेरणा दे सकती है, और तो और इसी से हमें खुद को समझने का मौका भी मिलता है। सीखने का, बदलने का, कुछ नया करने का अवसर भी यही देती है। तो क्यों ना इसे ही अपनी दोस्त बनाकर बीती गलतियों से सबक लें और नए रास्ते खोजकर खुद को हमेशा के लिए इसकी गिरफ्त से आजाद कर ले, एक नई सोच के साथ! और हमेशा के लिए तन्हाई को अलविदा कर दें! अपने जीवन से।
©Prakash Vats Dubey
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