रचना दिनांक 21जनवर 2021
वार मंगलवार
समय सुबह पांच बजेपं्भावचित्र ्
् निज विचार ्
् शीर्षक ्
््तेरी तलाश तेरे दर पे,
तू कहां है और मैं कौन हूं््
वाह क्या बात है सही मायने में,
सच बोल कर ईशवंदना इसी को कहते हैं,।1।
,,सुना है कि तू रज रज कण कण में है,,
लेकिन इन्सान भला कैसे समझें,
वह नित बवाल लिये खड़ा है।2।
ना मालूम है वो लफ्जो से,
भावना से कहां खड़ा है,,
रोजी रोटी काम काज में,
निरन्तर युद्ध छिड़ा है।3।
घर घर में तैयार वयस्क युवा जगत और
किशोरी रोजगार में ,,
सर्वहारा पुनर्जागरण काल में,
सत्य कोण में संघर्षरत हैं।4।
कौम, जाति, धर्म, भाषा, नहीं होती
जींव में,,
वो निरन्तर अबोध अर्ध मानस से
जीता जागता उदाहरण है।5।
कर्मशील सजग प्रहरी,
कर्म में जीता और मरता है,।6।
उसका कोई नाम नहीं रिश्ता नहीं,
जिसमें परिवर्तन का कोई मतलब नहीं है।7।
क्योंकि उसकी धड़कनों में,
जो रचता है वो बसता है।8।
तभी तो सबसे अलग अलग गुणों में,
जींवो में जीता जागता,जिन्न ,आत्मा ,प्राणतत्व, पंचतत्व, से बना ,,
आकार ,प्रकार, निराकार,साकार,में प्राण वायु प्रतिष्ठित है।9।
यही सही समय, वक्त का,काल परिवेश ,
का आयना नज़रिया सहज महज़
प्रेम और बिछोह, प्यार का रिश्ता ,
अनमोल मृत्यु काल ही ,,
आनंद का तकल्लुफ आनंद
मोक्ष कारकं दिव्य चक्षु है।10।
्कवि शैलेंद्र आनंद ्
21 जनवरी 2025
©Shailendra Anand
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