कितना भी हो, ज़हरीला गरल,
घूँट दर घूँट तुम्हें, उसक
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कितना भी हो, ज़हरीला गरल, घूँट दर घूँट तुम्हें, उसको निगलना होगा, अब माँ के बिना, जीवन नहीं सरल, फिर भी, हे निडर ! वीर तुम्हें चलना होगा! जो सत्ता के व्यापारी थे, जो जेलों के अधिकारी थे, उनकी तुमने कर दी, जतन से समस्या बोझल, ऐसी ज़ोर की खाई है, कि सांस लेते, कटता नहीं पल, मृत्यु को भी आगे तुम्हारे, थक-हार के बस टलना होगा, अब माँ के बिना, जीवन नहीं सरल, फिर भी, हे निडर ! वीर तुम्हें चलना होगा! आ गयी विपदा गंभीर मगर, तुमने डटकर निस्तार किया, चहुँ ओर सबका सम्मान पाया, गरीबों को नया संसार दिया, पालन- पोषण सब सीखा है, जग- सागर को तरना होगा, अब माँ के बिना, जीवन नहीं सरल, फिर भी, हे निडर ! वीर तुम्हें चलना होगा! ©Kusumakar Muralidhar Pant

#nojotokavita #hindikavita  कितना भी हो, ज़हरीला गरल,
घूँट दर घूँट तुम्हें, उसको निगलना होगा,
अब माँ के बिना, जीवन नहीं सरल,
फिर भी, हे निडर ! वीर तुम्हें चलना होगा!

जो सत्ता के व्यापारी थे, जो जेलों के अधिकारी थे,
उनकी तुमने कर दी, जतन से समस्या बोझल,
ऐसी ज़ोर की खाई है,
कि सांस लेते, कटता नहीं पल,
मृत्यु को भी आगे तुम्हारे, थक-हार के बस टलना होगा,
अब माँ के बिना, जीवन नहीं सरल,
फिर भी, हे निडर ! वीर तुम्हें चलना होगा!

आ गयी विपदा गंभीर मगर, तुमने डटकर निस्तार किया,
चहुँ ओर सबका सम्मान पाया, गरीबों को नया संसार दिया,
पालन- पोषण सब सीखा है,
जग- सागर को तरना होगा,
अब माँ के बिना, जीवन नहीं सरल,
फिर भी, हे निडर ! वीर तुम्हें चलना होगा!

©Kusumakar Muralidhar Pant

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