कुछ नया अंदाज़ लेके, हाथों हाथ साज़ लेके,
चलते हैं म
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कुछ नया अंदाज़ लेके, हाथों हाथ साज़ लेके, चलते हैं महापुरुषों की राह में डगर में। जो भी आगे बढ़ रहा है, महानता में ढल रहा है, हो ना हो कभी ना कभी आ जाता है नज़र में। कौशल की कमी नहीं है, उड़ान अभी थमी नहीं है, चढ़ता मेहनत का रंग आ रहा असर में। क्या पता क्या है भगवान, वीर खड़े धनुष तान, कोशिश ऐसी करो कि रह न जाए कुछ कसर में। एक दिन होगा नाम, मिलेगा बड़ा इनाम, जैसे स्वर और व्यंजन दोनों आ जाए अक्षर में। फिर तुम्हारा कर्तव्य होगा, सिखाना गंतव्य होगा, ताकि दिये से दिया जलता रहे पूरे शहर में। ©Kusumakar Muralidhar Pant

 कुछ नया अंदाज़ लेके, हाथों हाथ साज़ लेके,
चलते हैं महापुरुषों की राह में डगर में।

जो भी आगे बढ़ रहा है, महानता में ढल रहा है,
हो ना हो कभी ना कभी आ जाता है नज़र में।

कौशल की कमी नहीं है, उड़ान अभी थमी नहीं है,
चढ़ता मेहनत का रंग आ रहा असर में।

क्या पता क्या है भगवान, वीर खड़े धनुष तान,
कोशिश ऐसी करो कि रह न जाए कुछ कसर में।

एक दिन होगा नाम, मिलेगा बड़ा इनाम,
जैसे स्वर और व्यंजन दोनों आ जाए अक्षर में।

फिर तुम्हारा कर्तव्य होगा, सिखाना गंतव्य होगा,
ताकि दिये से दिया जलता रहे पूरे शहर में।

©Kusumakar Muralidhar Pant

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