क्या लिखूं पापा पर,
हर घर में उजाला हैं पापा।
हर रिश्ते को बांधकर रखते,
ऐसे मोतियों की माला है पापा।
करते हैं सबकी हर ख्वाइशे पूरी,
ख़ुद की मनत्ते चाहे रह जाए अधूरी।
सारी जिमेदारियो का बोझ उठाते हैं,
अपना दर्द न किसी को बताते हैं।
सहनशील ओर धेर्यवान हैं पापा,
मेरे हर अरमान हैं पापा।
पापा हैं तो बचपना है,
बिन पापा के न कोई अपना हैं।
पापा हर सघर्षो से लड़ना सिखाते,
सही ओर गलत में भेद बताते।
जन्म जरूर देती हैं मां,
पर चलना पापा ने सिखाया।
खवाइशे पूरी करने के लिए,
ख़ुद को झोंक देते हैं,
अपने घर की राजकुमारी पराए घर को सौंप देते है।
ये तो सिर्फ़ पापा का ही जिगर हैं,
पापा के रहते हम निडर है।
मेरे हर ख़्वाब है पापा,
मेरी जिंदगी की किताब है पापा।
©आधुनिक कवयित्री
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