मैं कभी इतना भी नहीं ना- समझ रहा था, सब समझकर भी कुछ नहीं समझ रहा था। बदला था मौसम बदली थी सी वो हवाएं, मैं धागे सा बार-बार उसी में उलझ रहा था। ©ajaynswami.
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