मैंने हाथ फैलाए, पास मेरे कुछ न था,
तूने झोलियां द
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मैंने हाथ फैलाए, पास मेरे कुछ न था, तूने झोलियां दीं, भर-भर कर आशीर्वाद था। गुनाह मेरा कोई, तुझसे छुपा न था, इंशाल्लाह, तूने जो किया, मैं उसका तलबगार न था। ©नवनीत ठाकुर

#भक्ति  मैंने हाथ फैलाए, पास मेरे कुछ न था,
तूने झोलियां दीं, भर-भर कर आशीर्वाद था।
गुनाह मेरा कोई, तुझसे छुपा न था,
इंशाल्लाह, तूने जो किया, 
मैं उसका तलबगार न था।

©नवनीत ठाकुर

मैंने हाथ फैलाए, पास मेरे कुछ न था, तूने झोलियां दीं, भर-भर कर आशीर्वाद था। गुनाह मेरा कोई, तुझसे छुपा न था, इंशाल्लाह, तूने जो किया, मैं उसका तलबगार न था।

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