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सागर गहरा सागर हूँ पर उठने का करता यत्न निरंतर पूरी ताकत से लहरों को भेज रहा हूँ ऊपर बार बार गिरती हैं फिर भी.
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सागर गहरा सागर हूँ पर उठने का करता यत्न निरंतर पूरी ताकत से लहरों को भेज रहा हूँ ऊपर बार बार गिरती हैं फिर भी नहीं मानता हार जोर लगता हूँ मैं फिर से चकित देख संसार शरण सभी को देता हूँ मैं जो भी दर पर आता उसे गोद में लेकर अपने हाथों से नहलाता बेखुद मेरा आश्रय पाकर सुखी सहस्रों जीव बेशकीमती रत्नों से है भरी हमारी नीँव ©Sunil Kumar Maurya Bekhud
Sunil Kumar Maurya Bekhud
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