ये फ़ासले तेरी गलियों के हमसे तय न हुए हज़ार बार रुके हम हज़ार बार चले... ना रास्ता कहीं ठहरा, ना मंजिलें ठहरीं ये उम्र उड़ती हुई गर्द में गुज़ार चले.. ©Khan.
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