कलमों की लड़ाई में ना जाने क्या क्या खोने पड़े, तितलियां झूले सखी अल्हड़पन सब के सब झमेले हुए। नजर उठे जब निकलूं घर से क्या युद्ध नहीं निर्णायक हुए , व्यंग्यबा.
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