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कायरों का अपना कोई देश नहीं होता
छुट चुकी मिट्टी अब बिलबिलाने से क्या होता
छूट रही थी जमी जब तुम्हारी, खामोश तुम खड़े थे,
उठाई ना लाठी किसी ने
आखिर कोन कोन लड़े थे ?
आज देते हो इतिहास की दुहाई
सदियों पुराना तुमने इतिहास ना पड़ा,,
चीटी भी हाथी से लड़ जाती है,
लगता है यह बात तुमको समज ना आई।
कायरों का कोई अपना देश नहीं होता
लाखों की तादाद में थे तुम ,,
क्या खुद की कायरता पर अफसोस नहीं होता।
मे सिवाय संवेदना के कुछ ओर प्रकट नहीं कर सकता,,
जो कभी हुए ना अपनों के
ना अपनी मिट्टी के
उन्हें हम अपने साथ हंसी खुशी से नहीं रख सकते।
©JitendraSHARMA (सोज़)
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