कल देखा था तुम्हे.
छत पे,
बाल सुखाती
खुद की धुन में बहती हुई शांत
खबर थी मोहल्ले को की तुम आई हो
मगर गलियों में शांति बहुत थी
एक दफा खिड़की से झांकती तुम नजर आई थी
पलक झपकते कही गायब भी हो गई थी
मेरी चाय वही मेज में रखी ठंडी हो रही थी
और कलम सिर्फ तुम्हारा इंतजार कर रही थी
शायद अब अगली मुलाकात ना हो तुमसे
ये शहर तुम्हारे बिना अधूरे सा लगता है
और घर की दीवारें, तुम्हारी यादें दिलाती है
तुम्हारे हिस्से की खिचड़ी रख आया हु
अगली दफा साथ में खाएंगे.......
©बदनाम
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