मेरे दायरे में आने वाले लोग ,, मयकशी में नहा गए ,,
मैने भी ,, तकादा किया हर शाम मिलने का ,,,और वो पीठ मुझको दिखा गए ।।
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ये इश्क - मुश्क और फरेब ,,ये जली बुझी इक लॉ सा है ,
, देकर रंगीनियों का वास्ता ,,मुझे धुर - तलक वो बुझा गए ।
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तेरी शायरी अनमोल है ,,तुझे क्या फरहेज अब शराब से ,,
झूठी हौसला अफजाई में वो ,,मेरी जेब खाकी करा गए ।।
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ये शायरी और शराब ,, ताउम्र खुआब - ओ -ख्याल है ,,
मेरी रगो में भरकर अजाब ये ,,मेरी हस्ती को ही मीठा गए ।।
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कौन कहता है गम ए वापसी का अब कोई जरिया नहीं ,,,बस एक कतरा शराब याद दिला ही देगी ,,वो मेरे दोस्त सारे कहां गए ।
©#शून्य राणा
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