हे आशुतोष!,हे शिवशंकर! हे गंगधार के स्वामि सुघर।। तव कंठ सुशोभित है विषधर। हम आर्त्त पुकारें हे हर हर।। हे देवों के भी महादेव। हे आदि देव,देवाधिदेव।। हे कालों क.
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