हे आशुतोष!,हे शिवशंकर!
हे गंगधार के स्वामि सुघर।।
तव कंठ सुशोभित है विषधर।
हम आर्त्त पुकारें हे हर हर।।
हे देवों के भी महादेव।
हे आदि देव,देवाधिदेव।।
हे कालों के भी महाकाल।
शिशु-शशी सुशोभित दिव्य भाल।
मन माँहि किया कलुषों ने घर।
हिय तमस मिटाओ, हे अघहर!
हे रौद्र रूप ! हे शशिशेखर!
कर कृपा-वृष्टि हिय-धरनी पर।
कर तू डमरू के ड़म-ड़म स्वर।
हर 'परेशान' जन के दुःख हर।।
✍परेशान✍
©Jitendra Singh
#shivshankara