ख्वाहिश थी तुझे थोड़ा ज़्यादा देखूं,
एक दिन तेरी गली से गुजरा मैं
तेरे खिड़की दरवाजे सब बंद थे,
कुछ दरवाज़ों में दरख्त कुछ दरख़्तों में दरवाज़े थे,
हर दरख्त से देखा मैने,
हर दरख्त को देखा मैने,
किस दरख्त से देखा जाए
उस दरख्त से देखा मैने,
ख्वाहिश थी तुझे थोड़ा ज़्यादा देखूं,
©SUMIT RANA
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