वज़ूद जैसा भी सही मेरा, *मुगरहाँ_के_नीम* की याद अभी बाकी है। कलिजुग का परिवेश जैसा भी सही, वो पुराना *विरसा* अभी भी बाकी है। और सब कहते हैं नाम हो रहा है म.
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