हाय की, रूठ जाते है मौसम सारे, जब समेटे हम यादें तुम्हारे ओझल हो स्वपनित पलकों से, चमकते जाने कितने सितारे कुछ पीर हुई, कुछ दीद हुई, न जाने ये कैसी रीत हुई कुछ.
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