हाय की,
रूठ जाते है मौसम सारे, जब समेटे हम यादें तुम्हारे
ओझल हो स्वपनित पलकों से, चमकते जाने कितने सितारे
कुछ पीर हुई, कुछ दीद हुई, न जाने ये कैसी रीत हुई
कुछ मास हुए है मिले हुए, न जाने कैसे अजीज हुई
इक शख्स समय की बेला से ही खड़ा हुआ है साथ तुम्हारे
सोचूं जाने कैसे आखिर, खड़ा रहूं अब "मैं" साथ तुम्हारे!!
©nonpoeticpoet