गुलाब डे विशेष
गुलाब की महक सा इश्क़ था मेरा,
हर रंग में खिला, मगर बेख़बर था मेरा।
सुई-धागे जैसा जुड़ा था जो रिश्ता,
टूटकर बिखरना मुकद्दर था मेरा।।
एक शख़्स ने तोड़ दिया इस क़दर,
जैसे शाख़ से गिरा कोई फूल बेसबर।
कभी जिस बग़िया का गुलाब था मैं,
आज ख़ुशबू भी मेरी हो गई दर-बदर।।
गुलाब डे पर वो यादें फिर महकती हैं,
पुराने अफ़साने दिल में चुपचाप चहकती हैं।
मगर अब मैं कांटों से डरता नहीं,
इश्क़ का गुलाब फिर खिलेगा, मैं कभी बिखरता नहीं।।
– संतोष तात्या
शोधार्थी
©tatya luciferin
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