ये वर्ष का अंत नहीं एक अध्याय का अंत है,
अंत है कुछ मेरा अंत कुछ मेरे शब्दों का है।।
थे कुछ जज्बात जो पिघल गए, टूट गए
ये मेरी तासीर की गई कहानी का अंत हैं।।
उठाएंगे जनाजा ए दिल हम फिर भी आज
ये मेरे जीवन का नहीं, मेरी जीने की आरजू का अंत है।।
खिलेंगे कुछ फूल मजार ए मोहब्बत पे
ये मेरी खुद से की गई अज्म का अंत है।।
किरदार न आंका मेरा, न समझी मेरी सीरत
चलो छोड़ो, हुआ सबकी उलझनों का अंत है।।
कोई शिकवा नहीं, गर एक शिकस्त जरूर है
ये मेरे बार बार हारने की प्रक्रिया का अंत है।।
©Shyarana Andaaz (अज्ञात)
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