सखी मुझे बता जरा
इस आंगन से उड़कर चिड़िया
जब जाती है दुसरे आंगन मे
तो क्या यह आंग अब मेरा होगा या नही
तो कौनसा आंगन होगा
सखी मुझे बता जरा
शादी के बाद सखी हमारा मिलना हो पाएगा
हमारा इन गलियो मे खेलना शरारत करना क्या यह हो पएगा सखी
सखी मुझे बता जरा
बाबुल से रूठना फिर उनका मनाना
मां का प्यार से डाटना
हमारी उदासीयो का ख्याल रखकर हमे
मुस्कराना सिखना क्या सखी यह हो पाएगा
सखी मुझे बता जरा
हमारा रस्सी कुद खेलना , सड़को पर पाले बना कर खेलना
पत्थरो से खेलना , घरो के दरवाजो और खिडकीयों मे छुपकर खेलना
क्या सखी हम खेल पाएंगे
या हम खुद एक खेल बन जाएगें
सखी मुझे बता जरा
हमारे आंगन मे जो पेड़ ह उस पर रस्सी बांधकर झुलना
क्या आंगन मे पेड़ होगा
क्या हम झुल पाएंगे
क्या हम अपने बचपने को साथ लेकर जा पाएंगे
या उसको भी बाबुल के आंगन मे छोड़ कर जाना होगा
सखी मुझे बता जरा
हम जो बाबुल के आंगन मे
पँखो से उड़ते ह आसमान मे
क्या उस आंगन मे उड़ पाएंगे
क्या वहा पर हमारे पंख काट दिए जाएंगे
सखी बिना पंख कैसे उड़ पाएंगे
वे क्या बिना पँखो के मुझे अपने पंखो
के सहारे आसमान मे ले जाकर दुनिया कि सेर करा पाऐगा
सखी मुझे जरा बता
हमे ले जाने वाला क्या हमको समझ पाएगा
मुसीबत मे सखी
परेशानी और तकलीफ मे पिता
गलती पर मां की तरह प्रेम से डाटना
क्या वह यह सब किरदार बन पाएगा
या वो सिर्फ पति ही बनकर रह जाएगा
सखी मुझे जरा बता
सखी मुझे जरा बता
©verma sahab
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