अधरों पर मुस्कान रहे सदा न हो प्रिय अनुज ग़मजदा अलंकृत हो क्रीडांगन सम अरण्य हास्य से प्रस्फुटित सदैव प्रसन्नमय सौदामिनी चपल सा मन पीड़ानाशक तुम हो घर रमणीय क.
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