जो तूझसे मिल गई तो ये शमा फिर क्या होगी ??
बोलती आंधियाँ भी फिर से बेजुबान होगीं !
वो परवाना जो है बेताब ऐसे जलने को ...
हश्र ए मंज़र ही होगा ,राहतें कहां होगीं ??
हुआ मिलना कभी तो सोचना क्या आलम हो ...
मिजाज़ ए इश्क़ होगा ,तिश्नगी जहां होगी !!
जो आओ अब के गर तो चंद लम्हें साथ लाना...
दरमियां तू , तेरी बातें और ये हवा होगी !!
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©Shikha Sharma
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