किसी ने देखा,किसी ने अनदेखा,
खुश भी हुआ,नाखुश भी हुआ।
नैनों से कब नैन मिले,
कब इजहार कब प्यार हुआ।
प्रस्ताव की जरूरत थी नहीं,
पर गुलदस्ता भेंट कर दिया।
प्रेम के आकस्मिक रूप ने,,
स्वर्ग से जीवन में रख दिया।
प्रेम सरोवर में स्नान करके,
अभिभूत हुआ इस प्रेयसी से,
डूब गए डुबकी लगाकर,,
सपनों में मंद हंसी से।
कब जमीं से फलक पे,
क्षितिज प्रेम आरंभ हुआ।
नैनों से कब नैन मिले,,
कब इज़हार कब प्यार हुआ।।
©Satish Kumar Meena
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