रावणों के दौर में क्यों राम ढूँढता है,
ईर्ष्या की जलती धूप में छाँव ढूँढता है,
नहीं मिलता न्याय ग़रीबों को माँगकर,
स्वार्थ के बाज़ार में क्यों काम ढूँढता है।
चाहे जो सम्मान तो कुछ ऐसे कर्म कर,
गर्व हो भगवान को इंसानी धर्म पर,
अंत में रुकसत तू जो हो इस जहान से,
दुश्मन भी दे दुआएं तुझे झोलियाँ भरकर।
रविकुमार...
रावणों के दौर में क्यों राम ढूँढता है,
ईर्ष्या की जलती धूप में छाँव ढूँढता है,
नहीं मिलता न्याय ग़रीबों को माँगकर,
स्वार्थ के बाज़ार में क्यों काम ढूँढता है।
चाहे जो सम्मान तो कुछ ऐसे कर्म कर,
गर्व हो भगवान को इंसानी धर्म पर,
अंत में रुकसत तू जो हो इस जहान से,
दुश्मन भी दे दुआएं तुझे झोलियाँ भरकर।
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