यह बोझ हम ना ढोवें
छल के घावों को धोवें,
साहस, शक्ति को सजोवें,
किसने कितना ठगा हमें-
यह बोझ हम ना ढोवें !
शत्रुभावों में ना खोवें,
द्वेष के बीज ना बोवें,
कौन कितना सगा अपना-
यह बोझ हम ना ढोवें !
क्षीण गुलों पर ना रोवें,
मन में नव निश्चय पिरोवें,
कौन कितना जीता खेल-
यह बोझ हम ना ढोवें !
रात्रि से अधिक ना सोवें,
तन तंदुरस्ती से टोवें,
कौन कितना उग्र, सशक्त-
यह बोझ हम ना ढोवें !
डॉ आनंद दाधीच 'दधीचि'
©Anand Dadhich
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