मैं " पुरुष " हूँ
मैं भी घुटता हूँ , पिसता हूँ
टूटता हूँ , बिखरता हूँ
भीतर ही भीतर
रो नही पाता
कह नही पाता
पत्थर हो चुका
क्योंकि मैं पुरुष हूँ
मैं भी सताया जाता हूँ
जला दिया जाता हूँ
उस दहेज की आग में
जो कभी मांगा ही नही था
स्वाह कर दिया जाता हैं
मेरे उस मान-सम्मान का
तिनका - तिनका
कमाया था जिसे मैंने
मगर आह नही भर सकता
क्योकि मैं पुरुष हूँ
.
मैं भी देता हूँ आहुति
विवाह की अग्नि में
अपने रिश्तों की
हमेशा धकेल दिया जाता हूं
रिश्तों का वजन बांध कर
जिम्मेदारियों के उस कुँए में
जिसे भरा नही जा सकता
मेरे अंत तक कभी
कभी अपना दर्द बता नही सकता
किसी भी तरह जता नही सकता
बहुत मजबूत होने का
ठप्पा लगाए जीता हूँ
क्योंकि मैं पुरुष हूँ
©Andy Mann
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