इंसाफ को तरस्ता सारा देश, आखिर कब मिलेगा ?
हिन्दी में लिखना मेरी मजबूरी नहीं लेकिन भारत के लोगों, खासकर मुसलमानों ने हिन्दी को गुलामी की तरह क़ुबूल कर लिया है?
दिल्ली साम्प्रदायिक दंगा सीरीज !
पहली खबर में अपने देखा कि 72 पूर्व आई ए एस, आई पी एस,आई आर एस और आई एफ एस अफसरों ने जुल्म के खिलाफ राष्ट्रपति को खत लिखकर अत्याचारों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई है, ये हिन्दू मुस्लिम नहीं सच्चे इंसाफ पसन्द
सभी भारतीय हैं ।
दूसरी अहम खबर है दिल्ली के उप-राज्यपाल अनिल बैजल की ज़िद, किस के इशारे या हिदायत पर? साफ़ है, स्पष्ट है कि गुजरात के कुख्यात भारत के दो गद्दारों को बचाने में सहयोग का उदाहरण, भले ही संविधान के रक्षक को जस्टिस रंजन गोगोई बनना पड़े मगर निष्ठा रहेगी तो आर एस एस और भाजपा के प्रति न कि भारत के संविधान के प्रति। जस्टिस लोया बनने की हिम्मत तो नहीं, ये चारों देश गद्दार नहीं तो क्या सम्मानीय नागरिक भी कहलाएंगे?
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