सुनो.....!
तुम्हारी याद आती है....
बेहद.. और बेहिसाब आती है..,
कोशिश तो करती हूँ तुम्हें भूल जाने की....
मगर ये इक बार नहीं...
बार बार आती है....,
कोशिश की मैंने भी ख़ुद के लिए जीने की...
मगर ये मेरी कोशिश हर बार...
बेबस होकर हार जाती है....,
हर रोज़ इक घुटन सी रहती है ज़हन में मेरे...
ये बेपरवाह इसे इक बार नहीं ...
बार बार और गहन करती जाती है...
कोशिश करती हूं मायूसी से लड़कर खिलखिलाने की...
मगर ये बेरहम हर बार ही...
पलकें नम कर जाती है...
सुनो...मुझे तुम्हारी....
........ याद आती है...।
©Sonam Verma
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