तुम्हें पता अधिकारों का है
भुला दिया कर्तव्यों को,
कैसे कोई भूल पाएगा
दिये हुए वक्तव्यों को,
तौर तरीके बदले सबने
अपने उच्च विचारों से,
बदल सकेगा कोई कैसे
लोगों के मंतव्यो को,
मेले में प्रवास करने को
संगम हुआ सितारों का,
कहां से आए किसे पता
लौटेंगे फिर गंतव्यों को,
कर्म प्रधान धरा है इसमें
फल पर कोई जोर नहीं,
बदल सकेगा कौन यहां
जीवन के भवतव्यों को,
ज्ञान ध्यान आनन्द प्रेम है
विषय हृदय का ही 'गुंजन',
द्रोणाचार्य मिले हर युग में
श्रद्धावान एकलव्यों को,
-शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
प्रयागराज उ०प्र०
©Shashi Bhushan Mishra
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