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#foryoupage #Sadmusic #SadLife #foryou #public  White अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें

©Gumnaam Shayar

यूं ही नही गिरती वृक्षों से, ये शुष्क पीली पत्तियां। वर्षों की हरितिमा छुपाए मन में, ये कमजोर पत्तियां। प्रात की ओस लिए, भोर की आस लिए, दिनमान को समेटे, असंख्य रश्मियों में लिपटी, नए कोंपल को जगह देती, ये उदार पत्तियां। यूं ही नहीं बिखरती बेलों से, ये शुष्क पीली पत्तियां। थीं कभी शान वटों की, थिरकती थीं संग बसंत के, करती थीं मनुहार बादलों से, सावन में बरसने को, अनगिनत स्वप्न सजाती, ये तरुणायी में पत्तियां। यूं ही नहीं टूट जाती अपनों से, ये उदास पत्तियां। यूं ही नही गिरती वृक्षों से, ये शुष्क पीली पत्तियां। ©DrNidhi Srivastava

#poetrycollection #कविता #foryoupage #HindiPoem #fyp  यूं ही नही गिरती वृक्षों से,
ये शुष्क पीली पत्तियां।
वर्षों की हरितिमा छुपाए मन में,
ये कमजोर पत्तियां।
प्रात की ओस लिए,
भोर की आस लिए,
दिनमान को समेटे,
असंख्य रश्मियों में लिपटी,
नए कोंपल को जगह देती,
ये उदार पत्तियां।
यूं ही नहीं बिखरती बेलों से,
ये शुष्क पीली पत्तियां।
थीं कभी शान वटों की,
थिरकती थीं संग बसंत के,
करती थीं मनुहार बादलों से,
सावन में बरसने को,
अनगिनत स्वप्न सजाती,
ये तरुणायी में पत्तियां।
यूं ही नहीं टूट जाती अपनों से,
ये उदास पत्तियां।
यूं ही नही गिरती वृक्षों से,
ये शुष्क पीली पत्तियां।

©DrNidhi Srivastava
#वीडियो #trendingnow #foryoupage #Trending
#haldiceremony #haldikumukum #foryoupage #Trending #Happy
#foryoupage #Sadmusic #SadLife #foryou #public  White अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें

©Gumnaam Shayar

यूं ही नही गिरती वृक्षों से, ये शुष्क पीली पत्तियां। वर्षों की हरितिमा छुपाए मन में, ये कमजोर पत्तियां। प्रात की ओस लिए, भोर की आस लिए, दिनमान को समेटे, असंख्य रश्मियों में लिपटी, नए कोंपल को जगह देती, ये उदार पत्तियां। यूं ही नहीं बिखरती बेलों से, ये शुष्क पीली पत्तियां। थीं कभी शान वटों की, थिरकती थीं संग बसंत के, करती थीं मनुहार बादलों से, सावन में बरसने को, अनगिनत स्वप्न सजाती, ये तरुणायी में पत्तियां। यूं ही नहीं टूट जाती अपनों से, ये उदास पत्तियां। यूं ही नही गिरती वृक्षों से, ये शुष्क पीली पत्तियां। ©DrNidhi Srivastava

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ये शुष्क पीली पत्तियां।
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थीं कभी शान वटों की,
थिरकती थीं संग बसंत के,
करती थीं मनुहार बादलों से,
सावन में बरसने को,
अनगिनत स्वप्न सजाती,
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यूं ही नहीं टूट जाती अपनों से,
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यूं ही नही गिरती वृक्षों से,
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©DrNidhi Srivastava
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