पाणी बणिथै ल्वे जिकुड़ी कू,सिरवणी थै भिजोंणी च
तेरी निर्दयी माया गैल्या, अब मेरी आंख्यूँ थै रुवोंणी च
चिट्ठी लेखि धरि रैगी,कितबी का पेट "राज"
आख़रु थै लेखदी कलम,अब कुम्र जन पितौणी च
ब्यखुनी सुबेर ख्याल त्यारा ,रात्यु कू सुपन्या त्यारा हीं देखदू
हर बोल गीत कविता शायरी का ,त्यारा बारा मा हीं लेखदू
लूँण मर्चा घुशणु रांदूँ ,याद कैरी त्वे सदनी
मौल नी छि घौ कतै भी, स्या रुन्दी पीड़ा बतौणी च
पाणी बनिथै ल्वे जिकुड़ी कू,सिरवणी थै भिजोंणी च
यखुली बैठयूं रांदु अजकलु , अब कै दगड़ी रायेंदूँ नी
भूख तीस भी मोरी गे, अब कुछ भी मि चयेंदूँ नी
कुछ बि अब भूलेंदूँ नि, त्यारा बारा मा सौंजड्या
तेरी निर्भगी खुद स्या गैल्या, मि हर घड़ी सतौणी च
पाणी बनिथै ल्वे जिकुड़ी कू,सिरवणी थै भिजोंणी च
©Saurabh Raj Sauri
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