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मेरे अंदर का बच्चा कहता है मेरे अंदर का बच्चा कहता है कि मुझे तो बच्चा ही रहने दो,इस दुनियां में बड़ा होना अपने को दुविधा में ही रखना है मैं तो बच्चा ही ठीक हूं। ©Satish Kumar Meena

#विचार  मेरे अंदर का बच्चा कहता है  मेरे अंदर का बच्चा कहता है कि मुझे तो बच्चा ही रहने दो,इस दुनियां में बड़ा होना अपने को दुविधा में ही रखना है मैं तो बच्चा ही ठीक हूं।

©Satish Kumar Meena

मेरे अंदर का बच्चा

14 Love

#मोटिवेशनल #सपनों #अपने #पीछा #motivatation

White मैं आजीवन इंतजार कर जाऊं किसी और को स्वीकार कर सकूं ऐसा साहस मुझ में नहीं ©Tiranjana

#Quotes  White मैं आजीवन इंतजार कर जाऊं 
किसी और को स्वीकार कर सकूं ऐसा साहस मुझ में नहीं

©Tiranjana

मेरी कविता ✍️ मेरे अल्फाज ❤️

10 Love

जमीन पर आधिपत्य इंसान का, पशुओं को आसपास से दूर भगाए। हर जीव पर उसने डाला है बंधन, ये कैसी है जिद्द, ये किसका अधिकार है।। जहां पेड़ों की छांव थी कभी, अब ऊँची इमारतें वहाँ बसी। मिट्टी की जड़ों में जीवन दबा दिया, ये कैसी रचना का निर्माण है।। नदियों की धाराएं मोड़ दीं उसने, पर्वतों को काटा, जला कर जंगलों को कर दिया साफ है। प्रकृति रह गई अब दोहन की वस्तु मात्र, बस खुद की चाहत का संसार है। क्या सच में यही मानव का आविष्कार है? फैक्ट्रियों से उठता धुएं का गुबार है, सांसें घुटती दूसरे की, इसकी अब किसे परवाह है। बस खुद की उन्नति में सब कुर्बान है, उर्वरक और कीटनाशक से किया धरती पर कैसा अत्याचार है। हरियाली से दूर अब सबका घर-आँगन परिवार है, किसी से नहीं अब रह गया कोई सरोकार है, इंसान के मन पर छाया ये कैसा अंधकार है।। हरियाली छूटी, जीवन रूठा, सुख की खोज में सब कुछ छूटा। जो संतुलन से भरी थी कभी, बेजान सी प्रकृति पर किया कैसा पलटवार है।। बारूद के ढेर पर खड़ी है दुनिया, विकसित हथियारों का लगा बहुत बड़ा अंबार है। हो रहा ताकत का विस्तार है,खरीदने में लगी है होड़ यहां, ये कैसा सपना, कैसा ये कारोबार है? ये किसका विचार है, ये कैसा विचार है? क्या यही मानवता का सच्चा आकार है? ©नवनीत ठाकुर

#प्रकृति #कविता  जमीन पर आधिपत्य इंसान का,
पशुओं को आसपास से दूर भगाए।
हर जीव पर उसने डाला है बंधन,
ये कैसी है जिद्द, ये किसका  अधिकार है।।

जहां पेड़ों की छांव थी कभी,
अब ऊँची इमारतें वहाँ बसी।
मिट्टी की जड़ों में जीवन दबा दिया,
ये कैसी रचना का निर्माण है।।

नदियों की धाराएं मोड़ दीं उसने,
पर्वतों को काटा, जला कर जंगलों को कर दिया साफ है।
प्रकृति रह गई अब दोहन की वस्तु मात्र,
बस खुद की चाहत का संसार है।
क्या सच में यही मानव का आविष्कार है?

फैक्ट्रियों से उठता धुएं का गुबार है,
सांसें घुटती दूसरे की, इसकी अब किसे परवाह है।
बस खुद की उन्नति में सब कुर्बान है,
उर्वरक और कीटनाशक से किया धरती पर कैसा अत्याचार है।
 हरियाली से दूर अब सबका घर-आँगन परिवार है,
किसी से नहीं अब रह गया कोई सरोकार है,
इंसान के मन पर छाया ये कैसा अंधकार है।।

हरियाली छूटी, जीवन रूठा,
सुख की खोज में सब कुछ छूटा।
जो संतुलन से भरी थी कभी,
बेजान सी प्रकृति पर किया कैसा पलटवार है।।
बारूद के ढेर पर खड़ी है दुनिया, 
विकसित हथियारों का लगा बहुत बड़ा अंबार है।
हो रहा ताकत का विस्तार है,खरीदने में लगी है होड़ यहां, 
ये कैसा सपना, कैसा ये कारोबार है?
ये किसका विचार है, ये कैसा विचार है?
क्या यही मानवता का सच्चा आकार है?

©नवनीत ठाकुर

#प्रकृति का विलाप कविता

13 Love

#motivationalhindipoetry #कविता #lifeHindiPoetry #Inspiration #Motivation

सपनों की उड़ान #Poetry #Dreams #Inspiration #Motivation #hardwork #Hope #Journey #Success #motivationalhindipoetry #lifeHindiPoetry हिंदी

117 View

White कौड़ी दाम लगे नहीं, फिर कैसा इनकार। खुली ऑंख होता नहीं, सपनों का व्यापार।। रहो कहीं तुम प्यार में, मिला करो इकबार। सफल निरापद लोक में, सपनों का व्यापार।। कुसुम कली कच्ची अभी, तितली लख मंडराया। विकसित कुसुम नहीं कली, भंवरा नहिं निअराय।। प्रेम जगत में सार है, प्रेम-शक्ति अन् अन्त। मर्यादित हो प्रेम तो, प्रेम रुप भगवन्त।। ©Shiv Narayan Saxena

#love_shayari  White कौड़ी  दाम  लगे नहीं, फिर  कैसा इनकार।
 खुली ऑंख होता नहीं, सपनों का व्यापार।।

रहो  कहीं  तुम  प्यार में, मिला करो इकबार।
 सफल निरापद लोक में, सपनों का व्यापार।।

कुसुम  कली  कच्ची अभी, तितली लख मंडराया।
 विकसित कुसुम नहीं कली, भंवरा नहिं निअराय।।

प्रेम जगत में सार है, प्रेम-शक्ति अन् अन्त।
मर्यादित हो  प्रेम  तो,  प्रेम  रुप  भगवन्त।।

©Shiv Narayan Saxena

#love_shayari सपनों का व्यापार.

22 Love

मेरे अंदर का बच्चा कहता है मेरे अंदर का बच्चा कहता है कि मुझे तो बच्चा ही रहने दो,इस दुनियां में बड़ा होना अपने को दुविधा में ही रखना है मैं तो बच्चा ही ठीक हूं। ©Satish Kumar Meena

#विचार  मेरे अंदर का बच्चा कहता है  मेरे अंदर का बच्चा कहता है कि मुझे तो बच्चा ही रहने दो,इस दुनियां में बड़ा होना अपने को दुविधा में ही रखना है मैं तो बच्चा ही ठीक हूं।

©Satish Kumar Meena

मेरे अंदर का बच्चा

14 Love

#मोटिवेशनल #सपनों #अपने #पीछा #motivatation

White मैं आजीवन इंतजार कर जाऊं किसी और को स्वीकार कर सकूं ऐसा साहस मुझ में नहीं ©Tiranjana

#Quotes  White मैं आजीवन इंतजार कर जाऊं 
किसी और को स्वीकार कर सकूं ऐसा साहस मुझ में नहीं

©Tiranjana

मेरी कविता ✍️ मेरे अल्फाज ❤️

10 Love

जमीन पर आधिपत्य इंसान का, पशुओं को आसपास से दूर भगाए। हर जीव पर उसने डाला है बंधन, ये कैसी है जिद्द, ये किसका अधिकार है।। जहां पेड़ों की छांव थी कभी, अब ऊँची इमारतें वहाँ बसी। मिट्टी की जड़ों में जीवन दबा दिया, ये कैसी रचना का निर्माण है।। नदियों की धाराएं मोड़ दीं उसने, पर्वतों को काटा, जला कर जंगलों को कर दिया साफ है। प्रकृति रह गई अब दोहन की वस्तु मात्र, बस खुद की चाहत का संसार है। क्या सच में यही मानव का आविष्कार है? फैक्ट्रियों से उठता धुएं का गुबार है, सांसें घुटती दूसरे की, इसकी अब किसे परवाह है। बस खुद की उन्नति में सब कुर्बान है, उर्वरक और कीटनाशक से किया धरती पर कैसा अत्याचार है। हरियाली से दूर अब सबका घर-आँगन परिवार है, किसी से नहीं अब रह गया कोई सरोकार है, इंसान के मन पर छाया ये कैसा अंधकार है।। हरियाली छूटी, जीवन रूठा, सुख की खोज में सब कुछ छूटा। जो संतुलन से भरी थी कभी, बेजान सी प्रकृति पर किया कैसा पलटवार है।। बारूद के ढेर पर खड़ी है दुनिया, विकसित हथियारों का लगा बहुत बड़ा अंबार है। हो रहा ताकत का विस्तार है,खरीदने में लगी है होड़ यहां, ये कैसा सपना, कैसा ये कारोबार है? ये किसका विचार है, ये कैसा विचार है? क्या यही मानवता का सच्चा आकार है? ©नवनीत ठाकुर

#प्रकृति #कविता  जमीन पर आधिपत्य इंसान का,
पशुओं को आसपास से दूर भगाए।
हर जीव पर उसने डाला है बंधन,
ये कैसी है जिद्द, ये किसका  अधिकार है।।

जहां पेड़ों की छांव थी कभी,
अब ऊँची इमारतें वहाँ बसी।
मिट्टी की जड़ों में जीवन दबा दिया,
ये कैसी रचना का निर्माण है।।

नदियों की धाराएं मोड़ दीं उसने,
पर्वतों को काटा, जला कर जंगलों को कर दिया साफ है।
प्रकृति रह गई अब दोहन की वस्तु मात्र,
बस खुद की चाहत का संसार है।
क्या सच में यही मानव का आविष्कार है?

फैक्ट्रियों से उठता धुएं का गुबार है,
सांसें घुटती दूसरे की, इसकी अब किसे परवाह है।
बस खुद की उन्नति में सब कुर्बान है,
उर्वरक और कीटनाशक से किया धरती पर कैसा अत्याचार है।
 हरियाली से दूर अब सबका घर-आँगन परिवार है,
किसी से नहीं अब रह गया कोई सरोकार है,
इंसान के मन पर छाया ये कैसा अंधकार है।।

हरियाली छूटी, जीवन रूठा,
सुख की खोज में सब कुछ छूटा।
जो संतुलन से भरी थी कभी,
बेजान सी प्रकृति पर किया कैसा पलटवार है।।
बारूद के ढेर पर खड़ी है दुनिया, 
विकसित हथियारों का लगा बहुत बड़ा अंबार है।
हो रहा ताकत का विस्तार है,खरीदने में लगी है होड़ यहां, 
ये कैसा सपना, कैसा ये कारोबार है?
ये किसका विचार है, ये कैसा विचार है?
क्या यही मानवता का सच्चा आकार है?

©नवनीत ठाकुर

#प्रकृति का विलाप कविता

13 Love

#motivationalhindipoetry #कविता #lifeHindiPoetry #Inspiration #Motivation

सपनों की उड़ान #Poetry #Dreams #Inspiration #Motivation #hardwork #Hope #Journey #Success #motivationalhindipoetry #lifeHindiPoetry हिंदी

117 View

White कौड़ी दाम लगे नहीं, फिर कैसा इनकार। खुली ऑंख होता नहीं, सपनों का व्यापार।। रहो कहीं तुम प्यार में, मिला करो इकबार। सफल निरापद लोक में, सपनों का व्यापार।। कुसुम कली कच्ची अभी, तितली लख मंडराया। विकसित कुसुम नहीं कली, भंवरा नहिं निअराय।। प्रेम जगत में सार है, प्रेम-शक्ति अन् अन्त। मर्यादित हो प्रेम तो, प्रेम रुप भगवन्त।। ©Shiv Narayan Saxena

#love_shayari  White कौड़ी  दाम  लगे नहीं, फिर  कैसा इनकार।
 खुली ऑंख होता नहीं, सपनों का व्यापार।।

रहो  कहीं  तुम  प्यार में, मिला करो इकबार।
 सफल निरापद लोक में, सपनों का व्यापार।।

कुसुम  कली  कच्ची अभी, तितली लख मंडराया।
 विकसित कुसुम नहीं कली, भंवरा नहिं निअराय।।

प्रेम जगत में सार है, प्रेम-शक्ति अन् अन्त।
मर्यादित हो  प्रेम  तो,  प्रेम  रुप  भगवन्त।।

©Shiv Narayan Saxena

#love_shayari सपनों का व्यापार.

22 Love

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