White कौड़ी दाम लगे नहीं, फिर कैसा इनकार। खुली | हिंदी Poetry

"White कौड़ी दाम लगे नहीं, फिर कैसा इनकार। खुली ऑंख होता नहीं, सपनों का व्यापार।। रहो कहीं तुम प्यार में, मिला करो इकबार। सफल निरापद लोक में, सपनों का व्यापार।। कुसुम कली कच्ची अभी, तितली लख मंडराया। विकसित कुसुम नहीं कली, भंवरा नहिं निअराय।। प्रेम जगत में सार है, प्रेम-शक्ति अन् अन्त। मर्यादित हो प्रेम तो, प्रेम रुप भगवन्त।। ©Shiv Narayan Saxena"

 White कौड़ी  दाम  लगे नहीं, फिर  कैसा इनकार।
 खुली ऑंख होता नहीं, सपनों का व्यापार।।

रहो  कहीं  तुम  प्यार में, मिला करो इकबार।
 सफल निरापद लोक में, सपनों का व्यापार।।

कुसुम  कली  कच्ची अभी, तितली लख मंडराया।
 विकसित कुसुम नहीं कली, भंवरा नहिं निअराय।।

प्रेम जगत में सार है, प्रेम-शक्ति अन् अन्त।
मर्यादित हो  प्रेम  तो,  प्रेम  रुप  भगवन्त।।

©Shiv Narayan Saxena

White कौड़ी दाम लगे नहीं, फिर कैसा इनकार। खुली ऑंख होता नहीं, सपनों का व्यापार।। रहो कहीं तुम प्यार में, मिला करो इकबार। सफल निरापद लोक में, सपनों का व्यापार।। कुसुम कली कच्ची अभी, तितली लख मंडराया। विकसित कुसुम नहीं कली, भंवरा नहिं निअराय।। प्रेम जगत में सार है, प्रेम-शक्ति अन् अन्त। मर्यादित हो प्रेम तो, प्रेम रुप भगवन्त।। ©Shiv Narayan Saxena

#love_shayari सपनों का व्यापार.

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