White फेक फेमिनिज्म की आधुनिकता"
जहाँ पुरुष अपनी पैंट की,मात्र चैन खुली रह जाने पर
लज्जा में झुक जाते हैं,
वहीं कुछ स्त्रियाँ
अपनी छाती, पीठ, जांघ और कमरदिखाकर गर्व से कहती हैं—
"सिर्फ तुम्हारी सोच गंदी है।"
आधुनिकता का जो झूठा आवरण
ओढ़ लिया है कुछ ने,
उसके पीछे छिपी है
फेक फेमिनिज्म की तस्वीर,
जिसमें स्वतंत्रता का अर्थ है
केवल शरीर को प्रदर्शित करना,
न कि विचारों की आजादी या
स्वाभिमान की समझ।
कहती हैं वे, "तुम्हारी नजरें गंदी हैं,"
पर क्या यह सच है
या सिर्फ समाज को
दोष देने का एक और बहाना?
क्योंकि अगर सच में समानता होती,
तो ये आचरण खुद पर भी लागू होता,
ना कि केवल पुरुषों पर।
क्या आधुनिकता का मतलब सिर्फ इतना है
कि कपड़े कम हों, और विचारों की
गहराई खो जाए?
क्या नारी का अस्तित्व सिर्फ
उसके शरीर के खुलेपन में सिमट गया है,
या उसकी असली ताकत
उसके विचारों की ऊँचाई में है?
फेक फेमिनिज्म की आड़ में
कुछ ने भुला दी है अपनी पहचान,
अपनी संस्कृति, अपनी मर्यादा,
और वो गरिमा जो असली नारीत्व की पहचान थी।
सच की खोज में खोया गया है सम्मान,
और सिर्फ उंगलियाँ उठाने का खेल रह गया है।
अगर सच्ची स्वतंत्रता चाहिए,
तो शरीर नहीं, विचारों को मुक्त करो,
अपनी असली ताकत को पहचानो,
क्योंकि नारी केवल शरीर नहीं,
वो एक सोच है, एक शक्ति है,
जो दुनिया को बदल सकती है।
आधुनिकता के नाम पर
जो फेक फेमिनिज्म की लहर चली है,
उससे निकलकर खुद को
सच में स्वतंत्र करो,
ताकि समाज को दोष देने से पहले
खुद को देख सको।
यही असली नारीत्व है,
यही सच्ची आधुनिकता है।
©पूर्वार्थ
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