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पल्लव की डायरी जीवन को ही मौत के गले लगा ले अन्याय के डर से तोड़ दे आदमी को न्याय के दरबार से लिखी जाये पटकथा सौदे के लिये और फैलाया जाये मकड़जाल तारीखों के रूप में तोड़ दो भरम अब न्याय का मुँह यहाँ काला सच्चाई का होता है झूठे गवाह झूठे केसो से निर्वाह वकीलों और जजों का होता है जमानत और तारीखे बढ़ाने भर का बस यहाँ खेल होता है दम तोड़ती इंसानियत सुसाइड न्याय कर रहा है अंधा कानून बेकसूरों की जान निगल रहा है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव"

#कविता #justice  पल्लव की डायरी
जीवन को ही मौत के गले लगा ले
अन्याय के डर से
तोड़ दे आदमी को न्याय के दरबार से
लिखी जाये पटकथा सौदे के लिये
और फैलाया जाये मकड़जाल तारीखों के रूप में
तोड़ दो भरम अब न्याय का
मुँह यहाँ काला सच्चाई का होता है
झूठे गवाह झूठे केसो से
निर्वाह वकीलों और जजों का होता है
जमानत और तारीखे 
बढ़ाने भर का बस यहाँ खेल होता है
दम तोड़ती इंसानियत
सुसाइड न्याय कर रहा है
अंधा कानून बेकसूरों की जान निगल रहा है
                                            प्रवीण जैन पल्लव

©Praveen Jain "पल्लव"

#justice अंधा कानून बेकसूरों की जान निगल रहा है

21 Love

कुरुक्षेत्र की धरा पर, रण का उन्माद था, दोनों ओर खड़े, अपनों का संवाद था। धनुष उठाए वीर अर्जुन, किंतु व्याकुल मन, सामने खड़ा कुल-परिवार, और प्रियजन। व्यूह में थे गुरु द्रोण, आशीष जिनसे पाया, भीष्म पितामह खड़े, जिन्होंने धर्म सिखाया। मातुल शकुनि, सखा दुर्योधन का दंभ, किंतु कौरवों के संग, सत्य का कहाँ था पंथ? पांडवों के साथ थे, धर्म का साथ निभाना, पर अपनों को हानि पहुँचा, क्या धर्म कहलाना? जिनसे बचपन के सुखद क्षण बिताए, आज उन्हीं पर बाण चलाने को उठाए। "हे कृष्ण! यह कैसी विकट घड़ी आई, जब अपनों को मारने की आज्ञा मुझे दिलाई। क्या सत्य-असत्य का भेद इतना गहरा, जो मुझे अपनों का ही रक्त बहाए कह रहा?" अर्जुन के मन में यह विषाद का सवाल, धर्म और कर्तव्य का बना था जंजाल। कृष्ण मुस्काए, बोले प्रेम और करुणा से, "जो सत्य का संग दे, वही विजय का आस है। हे पार्थ, कर्म करो, न फल की सोच रखो, धर्म की रेखा पर, अपना मनोबल सखो। यह युद्ध नहीं, यह धर्म का निर्णय है, तुम्हारा उद्देश्य बस सत्य का उद्गम है। ©Avinash Jha

#aeastheticthoughtes #संशय #Mahabharat #Krishna  कुरुक्षेत्र की धरा पर, रण का उन्माद था,
दोनों ओर खड़े, अपनों का संवाद था।
धनुष उठाए वीर अर्जुन, किंतु व्याकुल मन,
सामने खड़ा कुल-परिवार, और प्रियजन।

व्यूह में थे गुरु द्रोण, आशीष जिनसे पाया,
भीष्म पितामह खड़े, जिन्होंने धर्म सिखाया।
मातुल शकुनि, सखा दुर्योधन का दंभ,
किंतु कौरवों के संग, सत्य का कहाँ था पंथ?

पांडवों के साथ थे, धर्म का साथ निभाना,
पर अपनों को हानि पहुँचा, क्या धर्म कहलाना?
जिनसे बचपन के सुखद क्षण बिताए,
आज उन्हीं पर बाण चलाने को उठाए।

"हे कृष्ण! यह कैसी विकट घड़ी आई,
जब अपनों को मारने की आज्ञा मुझे दिलाई।
क्या सत्य-असत्य का भेद इतना गहरा,
जो मुझे अपनों का ही रक्त बहाए कह रहा?"

अर्जुन के मन में यह विषाद का सवाल,
धर्म और कर्तव्य का बना था जंजाल।
कृष्ण मुस्काए, बोले प्रेम और करुणा से,
"जो सत्य का संग दे, वही विजय का आस है।

हे पार्थ, कर्म करो, न फल की सोच रखो,
धर्म की रेखा पर, अपना मनोबल सखो।
यह युद्ध नहीं, यह धर्म का निर्णय है,
तुम्हारा उद्देश्य बस सत्य का उद्गम है।

©Avinash Jha
#Videos

दियरा का राजा का महल

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#Quotes

mahabharat

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पल्लव की डायरी जीवन को ही मौत के गले लगा ले अन्याय के डर से तोड़ दे आदमी को न्याय के दरबार से लिखी जाये पटकथा सौदे के लिये और फैलाया जाये मकड़जाल तारीखों के रूप में तोड़ दो भरम अब न्याय का मुँह यहाँ काला सच्चाई का होता है झूठे गवाह झूठे केसो से निर्वाह वकीलों और जजों का होता है जमानत और तारीखे बढ़ाने भर का बस यहाँ खेल होता है दम तोड़ती इंसानियत सुसाइड न्याय कर रहा है अंधा कानून बेकसूरों की जान निगल रहा है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव"

#कविता #justice  पल्लव की डायरी
जीवन को ही मौत के गले लगा ले
अन्याय के डर से
तोड़ दे आदमी को न्याय के दरबार से
लिखी जाये पटकथा सौदे के लिये
और फैलाया जाये मकड़जाल तारीखों के रूप में
तोड़ दो भरम अब न्याय का
मुँह यहाँ काला सच्चाई का होता है
झूठे गवाह झूठे केसो से
निर्वाह वकीलों और जजों का होता है
जमानत और तारीखे 
बढ़ाने भर का बस यहाँ खेल होता है
दम तोड़ती इंसानियत
सुसाइड न्याय कर रहा है
अंधा कानून बेकसूरों की जान निगल रहा है
                                            प्रवीण जैन पल्लव

©Praveen Jain "पल्लव"

#justice अंधा कानून बेकसूरों की जान निगल रहा है

21 Love

कुरुक्षेत्र की धरा पर, रण का उन्माद था, दोनों ओर खड़े, अपनों का संवाद था। धनुष उठाए वीर अर्जुन, किंतु व्याकुल मन, सामने खड़ा कुल-परिवार, और प्रियजन। व्यूह में थे गुरु द्रोण, आशीष जिनसे पाया, भीष्म पितामह खड़े, जिन्होंने धर्म सिखाया। मातुल शकुनि, सखा दुर्योधन का दंभ, किंतु कौरवों के संग, सत्य का कहाँ था पंथ? पांडवों के साथ थे, धर्म का साथ निभाना, पर अपनों को हानि पहुँचा, क्या धर्म कहलाना? जिनसे बचपन के सुखद क्षण बिताए, आज उन्हीं पर बाण चलाने को उठाए। "हे कृष्ण! यह कैसी विकट घड़ी आई, जब अपनों को मारने की आज्ञा मुझे दिलाई। क्या सत्य-असत्य का भेद इतना गहरा, जो मुझे अपनों का ही रक्त बहाए कह रहा?" अर्जुन के मन में यह विषाद का सवाल, धर्म और कर्तव्य का बना था जंजाल। कृष्ण मुस्काए, बोले प्रेम और करुणा से, "जो सत्य का संग दे, वही विजय का आस है। हे पार्थ, कर्म करो, न फल की सोच रखो, धर्म की रेखा पर, अपना मनोबल सखो। यह युद्ध नहीं, यह धर्म का निर्णय है, तुम्हारा उद्देश्य बस सत्य का उद्गम है। ©Avinash Jha

#aeastheticthoughtes #संशय #Mahabharat #Krishna  कुरुक्षेत्र की धरा पर, रण का उन्माद था,
दोनों ओर खड़े, अपनों का संवाद था।
धनुष उठाए वीर अर्जुन, किंतु व्याकुल मन,
सामने खड़ा कुल-परिवार, और प्रियजन।

व्यूह में थे गुरु द्रोण, आशीष जिनसे पाया,
भीष्म पितामह खड़े, जिन्होंने धर्म सिखाया।
मातुल शकुनि, सखा दुर्योधन का दंभ,
किंतु कौरवों के संग, सत्य का कहाँ था पंथ?

पांडवों के साथ थे, धर्म का साथ निभाना,
पर अपनों को हानि पहुँचा, क्या धर्म कहलाना?
जिनसे बचपन के सुखद क्षण बिताए,
आज उन्हीं पर बाण चलाने को उठाए।

"हे कृष्ण! यह कैसी विकट घड़ी आई,
जब अपनों को मारने की आज्ञा मुझे दिलाई।
क्या सत्य-असत्य का भेद इतना गहरा,
जो मुझे अपनों का ही रक्त बहाए कह रहा?"

अर्जुन के मन में यह विषाद का सवाल,
धर्म और कर्तव्य का बना था जंजाल।
कृष्ण मुस्काए, बोले प्रेम और करुणा से,
"जो सत्य का संग दे, वही विजय का आस है।

हे पार्थ, कर्म करो, न फल की सोच रखो,
धर्म की रेखा पर, अपना मनोबल सखो।
यह युद्ध नहीं, यह धर्म का निर्णय है,
तुम्हारा उद्देश्य बस सत्य का उद्गम है।

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