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#कविता #sunset_time  White 
चांदनी रात शरद पूर्णिमा पुरे शबाब पर है।
जीवन तो चल रही है यु ही आजकल लोग हों रहें हैं चांद, तारों से दूर जिंदगी जीए जा रहें हैं जैसे कोई हिसाब पर है।

शरद की पुर्णिमा तो बरस रही है।
कृष्ण से मिलने को राधा तरस रही है।
अब न जाने रास क्यों नहीं हो रहा है। दुःख से तड़प रहा इंसान,मानव भगवान से दूर कहीं खो रहा है। इसलिए इंसान रो रहा है।

शरद पूर्णिमा की चांद की खुबसूरती जैसे प्रिया मिलन को सजी है।
गहरे आकाश के माथे पर बसी कोई दुल्हन की बिंदी है।

मंद मंद हवा बह रही है रात शीतल है। पेड़ पौधों के पत्ते डोल रहें हैं।
तारों की बारात लेकर शरद की पुर्णिमा की चंद्रमा सुंदर सजी है।

शरद पूर्णिमा में मैं बेगाना कवि प्रियसी की याद में रो रहा हूं।
कब वो देंगी दर्शन मुझे बस यही चांद को देख सोच रहा हूं।

वादियों में आज अजीब सा नशा है।
क्यों की इस चांदनी रात में उसकी याद दिल में बसा है।
जनम जनम से उसकी ही तलाश है।
इस शरद पूर्णिमा में उस प्रभु से मिलन की आस है।

©IG @kavi_neetesh

#sunset_time Hinduism प्रेम कविता हिंदी कविता हिंदी दिवस पर कविता देशभक्ति कविताकविता। शरद पूर्णिमा। चांदनी रात शरद पूर्णिमा पुरे शबाब प

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#रिश्ते_नाते #अपने_पराये #कहना_सुनना #आखिर_कब_तक #रोना_धोना #हर_बार  White कहना सुनना आखिर कब तक!!!!??!!!

रोना धोना आखिर कब तक !!??!!!!

जीवन के सफ़र में कोई साथी न संगी न चेला कोई 

हर पल हर दम हर बार,
एक अकेला मैं,,, आखिर कब  तक !!???!!!

रिश्ते नाते अपने पराए किसी भी हम रास ना आए 
हमने तो सब अपने बनाए,,,, पर,,

अपनों में ही केवल ,,,मैं ही,,,,  बेगाना आखिर कब तक !!??!!!

कहना सुनना आखिर कब तक !!!??!!??
सहना सहना आखिर कब तक !!???!!??

©Rakesh frnds4ever

#कहना_सुनना #आखिर_कब_तक , #रोना_धोना आखिर कब तक #जीवन के सफ़र में कोई साथी_न_संगी न चेला कोई हर पल हर दम #हर_बार , एक अकेला मैं आखिर कब

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#कविता #sunset_time  White 
चांदनी रात शरद पूर्णिमा पुरे शबाब पर है।
जीवन तो चल रही है यु ही आजकल लोग हों रहें हैं चांद, तारों से दूर जिंदगी जीए जा रहें हैं जैसे कोई हिसाब पर है।

शरद की पुर्णिमा तो बरस रही है।
कृष्ण से मिलने को राधा तरस रही है।
अब न जाने रास क्यों नहीं हो रहा है। दुःख से तड़प रहा इंसान,मानव भगवान से दूर कहीं खो रहा है। इसलिए इंसान रो रहा है।

शरद पूर्णिमा की चांद की खुबसूरती जैसे प्रिया मिलन को सजी है।
गहरे आकाश के माथे पर बसी कोई दुल्हन की बिंदी है।

मंद मंद हवा बह रही है रात शीतल है। पेड़ पौधों के पत्ते डोल रहें हैं।
तारों की बारात लेकर शरद की पुर्णिमा की चंद्रमा सुंदर सजी है।

शरद पूर्णिमा में मैं बेगाना कवि प्रियसी की याद में रो रहा हूं।
कब वो देंगी दर्शन मुझे बस यही चांद को देख सोच रहा हूं।

वादियों में आज अजीब सा नशा है।
क्यों की इस चांदनी रात में उसकी याद दिल में बसा है।
जनम जनम से उसकी ही तलाश है।
इस शरद पूर्णिमा में उस प्रभु से मिलन की आस है।

©IG @kavi_neetesh

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रोना धोना आखिर कब तक !!??!!!!

जीवन के सफ़र में कोई साथी न संगी न चेला कोई 

हर पल हर दम हर बार,
एक अकेला मैं,,, आखिर कब  तक !!???!!!

रिश्ते नाते अपने पराए किसी भी हम रास ना आए 
हमने तो सब अपने बनाए,,,, पर,,

अपनों में ही केवल ,,,मैं ही,,,,  बेगाना आखिर कब तक !!??!!!

कहना सुनना आखिर कब तक !!!??!!??
सहना सहना आखिर कब तक !!???!!??

©Rakesh frnds4ever

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