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#शायरी  White आदमी आदमी अब रहा ही नहीं,
बात दिल की कभी सुना ही नहीं।

साथ  सबका   निभाने   को   है  चला,
यार खुद का भला खुद किया ही नहीं।

©अनिल कसेर "उजाला"

आदमी

90 View

White एक पल नहीं लगता इस दुनिया से बिदा होने में फिर भी कितना गुरूर है आदमी को आदमी होने में..? ©‌Abdhesh prajapati

 White एक पल नहीं लगता
 इस दुनिया से बिदा होने में फिर भी कितना गुरूर है
आदमी को आदमी होने में..?

©‌Abdhesh prajapati

आदमी को आदमी होने में

19 Love

#शायरी  White 

ज़िंदगी में अगर प्यार मिल जाएगा,
दर्द-ए-गम खुशी में  बदल जाएगा।

आदमी आदमी को समझ जाए तो,
पत्थरों में  भी  फूल  खिल  जाएगा।

©अनिल कसेर "उजाला"

आदमी

144 View

White शादीशुदा पुरुष का संघर्ष शादीशुदा स्त्री की पीड़ा पर,सैकड़ों कविताएं गढ़ी गईं, कहानियों में बसी उसकी वेदना,हर बार सम्मान से पढ़ी गईं। पर शादीशुदा पुरुष का क्या?क्या उसके दुख कोई सुनता है? जो हंसता है सबके सामने,क्या भीतर से कभी खिलता है? वो घर का स्तंभ है, छत है, दीवार है,उसके कांधों पर हर जिम्मेदारी का भार है। सुबह से रात तक भागता दौड़ता,सपनों से पहले, अपनों का ख्याल करता। हर सुबह उठकर वो काम पर जाता,दबाव के पहाड़ तले, खुद को छिपाता। दफ्तर की राजनीति, बॉस की फटकार,सब सहकर भी लाता है घर का त्योहार। घर में जो रोटी की खुशबू आती है,वो उसके पसीने की गंध से मिलती है। बच्चों की मुस्कान, पत्नी की खुशी,उसकी दुनिया बस इन्हीं में सिमटती है। पर क्या कभी किसी ने देखा है,उसकी आंखों में छिपा दर्द? उसके सपने, उसकी ख्वाहिशें,कहीं धुंधले पड़ गए हर कदम। वो भी थकता है, पर कह नहीं पाता,दर्द से जूझता है, पर रो नहीं पाता। उसकी मेहनत को ना कोई समझता,उसके संघर्ष को बस समाज अनदेखा करता। जब पत्नी थकती है, दुनिया उसे सहलाती,जब पति थकता है, चुप्पी उसे खा जाती। कहां है वो कंधा, जिस पर वो सिर टिकाए?कहां है वो सुकून, जो उसका मन बहलाए? कभी-कभी अपमान की आंधियां आती हैं,घर के भीतर भी ताने सुनाई जाती हैं। "तुम तो बस कमाने की मशीन हो,क्या और कोई संवेदना तुम्हारे पास नहीं हो?" आरोप, अपेक्षा और तुलना के बाण,हर दिन उसकी आत्मा पर चलते हैं तीर समान। कभी खुद को समझा नहीं पाता,कभी सबकी उम्मीदों का भार सह जाता। पर ये समाज उसे हीरो नहीं मानता,ना उसकी तकलीफ पर कोई गीत गाता। जो देता है सबको सपनों का सहारा,वो खुद अकेला क्यों रह जाता है बेचारा? वो भी इंसान है, पत्थर नहीं,उसके भी अरमान हैं, कोई समझ नहीं। उसकी चुप्पी में एक गहरा समंदर है,उसका हर दिन, एक नया संघर्ष है। तो चलो, अब उसकी भी कहानी लिखी जाए,उसकी वेदना को भी स्वर दिए जाएं। शादीशुदा पुरुष को भी सम्मान मिले,उसकी मेहनत और संघर्ष को सराहा जाए। वो भी जीता है, वो भी सहता है,उसकी भी कहानी अब कही जाए। क्योंकि वो भी समाज का आधार है,उसके बिना हर परिवार अधूरा संसार है। ©पूर्वार्थ

#आदमी  White शादीशुदा पुरुष का संघर्ष

शादीशुदा स्त्री की पीड़ा पर,सैकड़ों कविताएं गढ़ी गईं,
कहानियों में बसी उसकी वेदना,हर बार सम्मान से पढ़ी गईं।

पर शादीशुदा पुरुष का क्या?क्या उसके दुख कोई सुनता है?
जो हंसता है सबके सामने,क्या भीतर से कभी खिलता है?

वो घर का स्तंभ है, छत है, दीवार है,उसके कांधों पर हर जिम्मेदारी का भार है।
सुबह से रात तक भागता दौड़ता,सपनों से पहले, अपनों का ख्याल करता।

हर सुबह उठकर वो काम पर जाता,दबाव के पहाड़ तले, खुद को छिपाता।
दफ्तर की राजनीति, बॉस की फटकार,सब सहकर भी लाता है घर का त्योहार।

घर में जो रोटी की खुशबू आती है,वो उसके पसीने की गंध से मिलती है।
बच्चों की मुस्कान, पत्नी की खुशी,उसकी दुनिया बस इन्हीं में सिमटती है।

पर क्या कभी किसी ने देखा है,उसकी आंखों में छिपा दर्द?
उसके सपने, उसकी ख्वाहिशें,कहीं धुंधले पड़ गए हर कदम।

वो भी थकता है, पर कह नहीं पाता,दर्द से जूझता है, पर रो नहीं पाता।
उसकी मेहनत को ना कोई समझता,उसके संघर्ष को बस समाज अनदेखा करता।

जब पत्नी थकती है, दुनिया उसे सहलाती,जब पति थकता है, चुप्पी उसे खा जाती।
कहां है वो कंधा, जिस पर वो सिर टिकाए?कहां है वो सुकून, जो उसका मन बहलाए?

कभी-कभी अपमान की आंधियां आती हैं,घर के भीतर भी ताने सुनाई जाती हैं।
"तुम तो बस कमाने की मशीन हो,क्या और कोई संवेदना तुम्हारे पास नहीं हो?"

आरोप, अपेक्षा और तुलना के बाण,हर दिन उसकी आत्मा पर चलते हैं तीर समान।
कभी खुद को समझा नहीं पाता,कभी सबकी उम्मीदों का भार सह जाता।

पर ये समाज उसे हीरो नहीं मानता,ना उसकी तकलीफ पर कोई गीत गाता।
जो देता है सबको सपनों का सहारा,वो खुद अकेला क्यों रह जाता है बेचारा?

वो भी इंसान है, पत्थर नहीं,उसके भी अरमान हैं, कोई समझ नहीं।
उसकी चुप्पी में एक गहरा समंदर है,उसका हर दिन, एक नया संघर्ष है।

तो चलो, अब उसकी भी कहानी लिखी जाए,उसकी वेदना को भी स्वर दिए जाएं।
शादीशुदा पुरुष को भी सम्मान मिले,उसकी मेहनत और संघर्ष को सराहा जाए।

वो भी जीता है, वो भी सहता है,उसकी भी कहानी अब कही जाए।
क्योंकि वो भी समाज का आधार है,उसके बिना हर परिवार अधूरा संसार है।

©पूर्वार्थ

#आदमी

13 Love

Unsplash स्वाध्याय ज्ञान प्राप्त करने का सबसे अच्छा साधन है इससे अनुभव के साथ साथ मस्तिष्क का भी विकास होता है। ©Satish Kumar Meena

#मोटिवेशनल  Unsplash स्वाध्याय ज्ञान प्राप्त करने का सबसे अच्छा साधन है इससे अनुभव के साथ साथ मस्तिष्क का भी विकास होता है।

©Satish Kumar Meena

स्वाध्याय

18 Love

खोया

90 View

#शायरी  White आदमी आदमी अब रहा ही नहीं,
बात दिल की कभी सुना ही नहीं।

साथ  सबका   निभाने   को   है  चला,
यार खुद का भला खुद किया ही नहीं।

©अनिल कसेर "उजाला"

आदमी

90 View

White एक पल नहीं लगता इस दुनिया से बिदा होने में फिर भी कितना गुरूर है आदमी को आदमी होने में..? ©‌Abdhesh prajapati

 White एक पल नहीं लगता
 इस दुनिया से बिदा होने में फिर भी कितना गुरूर है
आदमी को आदमी होने में..?

©‌Abdhesh prajapati

आदमी को आदमी होने में

19 Love

#शायरी  White 

ज़िंदगी में अगर प्यार मिल जाएगा,
दर्द-ए-गम खुशी में  बदल जाएगा।

आदमी आदमी को समझ जाए तो,
पत्थरों में  भी  फूल  खिल  जाएगा।

©अनिल कसेर "उजाला"

आदमी

144 View

White शादीशुदा पुरुष का संघर्ष शादीशुदा स्त्री की पीड़ा पर,सैकड़ों कविताएं गढ़ी गईं, कहानियों में बसी उसकी वेदना,हर बार सम्मान से पढ़ी गईं। पर शादीशुदा पुरुष का क्या?क्या उसके दुख कोई सुनता है? जो हंसता है सबके सामने,क्या भीतर से कभी खिलता है? वो घर का स्तंभ है, छत है, दीवार है,उसके कांधों पर हर जिम्मेदारी का भार है। सुबह से रात तक भागता दौड़ता,सपनों से पहले, अपनों का ख्याल करता। हर सुबह उठकर वो काम पर जाता,दबाव के पहाड़ तले, खुद को छिपाता। दफ्तर की राजनीति, बॉस की फटकार,सब सहकर भी लाता है घर का त्योहार। घर में जो रोटी की खुशबू आती है,वो उसके पसीने की गंध से मिलती है। बच्चों की मुस्कान, पत्नी की खुशी,उसकी दुनिया बस इन्हीं में सिमटती है। पर क्या कभी किसी ने देखा है,उसकी आंखों में छिपा दर्द? उसके सपने, उसकी ख्वाहिशें,कहीं धुंधले पड़ गए हर कदम। वो भी थकता है, पर कह नहीं पाता,दर्द से जूझता है, पर रो नहीं पाता। उसकी मेहनत को ना कोई समझता,उसके संघर्ष को बस समाज अनदेखा करता। जब पत्नी थकती है, दुनिया उसे सहलाती,जब पति थकता है, चुप्पी उसे खा जाती। कहां है वो कंधा, जिस पर वो सिर टिकाए?कहां है वो सुकून, जो उसका मन बहलाए? कभी-कभी अपमान की आंधियां आती हैं,घर के भीतर भी ताने सुनाई जाती हैं। "तुम तो बस कमाने की मशीन हो,क्या और कोई संवेदना तुम्हारे पास नहीं हो?" आरोप, अपेक्षा और तुलना के बाण,हर दिन उसकी आत्मा पर चलते हैं तीर समान। कभी खुद को समझा नहीं पाता,कभी सबकी उम्मीदों का भार सह जाता। पर ये समाज उसे हीरो नहीं मानता,ना उसकी तकलीफ पर कोई गीत गाता। जो देता है सबको सपनों का सहारा,वो खुद अकेला क्यों रह जाता है बेचारा? वो भी इंसान है, पत्थर नहीं,उसके भी अरमान हैं, कोई समझ नहीं। उसकी चुप्पी में एक गहरा समंदर है,उसका हर दिन, एक नया संघर्ष है। तो चलो, अब उसकी भी कहानी लिखी जाए,उसकी वेदना को भी स्वर दिए जाएं। शादीशुदा पुरुष को भी सम्मान मिले,उसकी मेहनत और संघर्ष को सराहा जाए। वो भी जीता है, वो भी सहता है,उसकी भी कहानी अब कही जाए। क्योंकि वो भी समाज का आधार है,उसके बिना हर परिवार अधूरा संसार है। ©पूर्वार्थ

#आदमी  White शादीशुदा पुरुष का संघर्ष

शादीशुदा स्त्री की पीड़ा पर,सैकड़ों कविताएं गढ़ी गईं,
कहानियों में बसी उसकी वेदना,हर बार सम्मान से पढ़ी गईं।

पर शादीशुदा पुरुष का क्या?क्या उसके दुख कोई सुनता है?
जो हंसता है सबके सामने,क्या भीतर से कभी खिलता है?

वो घर का स्तंभ है, छत है, दीवार है,उसके कांधों पर हर जिम्मेदारी का भार है।
सुबह से रात तक भागता दौड़ता,सपनों से पहले, अपनों का ख्याल करता।

हर सुबह उठकर वो काम पर जाता,दबाव के पहाड़ तले, खुद को छिपाता।
दफ्तर की राजनीति, बॉस की फटकार,सब सहकर भी लाता है घर का त्योहार।

घर में जो रोटी की खुशबू आती है,वो उसके पसीने की गंध से मिलती है।
बच्चों की मुस्कान, पत्नी की खुशी,उसकी दुनिया बस इन्हीं में सिमटती है।

पर क्या कभी किसी ने देखा है,उसकी आंखों में छिपा दर्द?
उसके सपने, उसकी ख्वाहिशें,कहीं धुंधले पड़ गए हर कदम।

वो भी थकता है, पर कह नहीं पाता,दर्द से जूझता है, पर रो नहीं पाता।
उसकी मेहनत को ना कोई समझता,उसके संघर्ष को बस समाज अनदेखा करता।

जब पत्नी थकती है, दुनिया उसे सहलाती,जब पति थकता है, चुप्पी उसे खा जाती।
कहां है वो कंधा, जिस पर वो सिर टिकाए?कहां है वो सुकून, जो उसका मन बहलाए?

कभी-कभी अपमान की आंधियां आती हैं,घर के भीतर भी ताने सुनाई जाती हैं।
"तुम तो बस कमाने की मशीन हो,क्या और कोई संवेदना तुम्हारे पास नहीं हो?"

आरोप, अपेक्षा और तुलना के बाण,हर दिन उसकी आत्मा पर चलते हैं तीर समान।
कभी खुद को समझा नहीं पाता,कभी सबकी उम्मीदों का भार सह जाता।

पर ये समाज उसे हीरो नहीं मानता,ना उसकी तकलीफ पर कोई गीत गाता।
जो देता है सबको सपनों का सहारा,वो खुद अकेला क्यों रह जाता है बेचारा?

वो भी इंसान है, पत्थर नहीं,उसके भी अरमान हैं, कोई समझ नहीं।
उसकी चुप्पी में एक गहरा समंदर है,उसका हर दिन, एक नया संघर्ष है।

तो चलो, अब उसकी भी कहानी लिखी जाए,उसकी वेदना को भी स्वर दिए जाएं।
शादीशुदा पुरुष को भी सम्मान मिले,उसकी मेहनत और संघर्ष को सराहा जाए।

वो भी जीता है, वो भी सहता है,उसकी भी कहानी अब कही जाए।
क्योंकि वो भी समाज का आधार है,उसके बिना हर परिवार अधूरा संसार है।

©पूर्वार्थ

#आदमी

13 Love

Unsplash स्वाध्याय ज्ञान प्राप्त करने का सबसे अच्छा साधन है इससे अनुभव के साथ साथ मस्तिष्क का भी विकास होता है। ©Satish Kumar Meena

#मोटिवेशनल  Unsplash स्वाध्याय ज्ञान प्राप्त करने का सबसे अच्छा साधन है इससे अनुभव के साथ साथ मस्तिष्क का भी विकास होता है।

©Satish Kumar Meena

स्वाध्याय

18 Love

खोया

90 View

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