tags

New wo yaqeen ka naya safar Status, Photo, Video

Find the latest Status about wo yaqeen ka naya safar from top creators only on Nojoto App. Also find trending photos & videos about wo yaqeen ka naya safar.

  • Latest
  • Popular
  • Video

White Girna inse hota hai jo chalte hai🌟 💪 baitho mat🌟 💪 phir se utho✨✨ ©Lokansh sir

#sad_quotes #Quotes  White Girna inse hota hai jo chalte hai🌟 💪 
baitho mat🌟 💪 phir se utho✨✨

©Lokansh sir

#sad_quotes life ka safar

7 Love

Unsplash 15 दिसंबर 1963 में हुआ था गठन, सेंट्रल स्कूल के नाम से शुरू हुआ था संगठन। 20 रेजिमेंटल विद्यालय बने थे देने को शिक्षा, उनके बच्चों को जो करते हैं देश की सुरक्षा। शिक्षा मंत्रालय की और से देश को मिला वरदान था, 1965 को संगठन को मिला नया नाम था। ज्ञान की रोशनी लेकर फैलाया उजियारा, देश से विदेश तक बढ़ा संगठन हमारा। देश को 1,253 विद्यालयों की मिली हुई है सौगात, जहां ज्ञान विज्ञान से चमकता भविष्य प्रभात । विदेश में विद्यालय हैं काठमांडू, मॉस्को और तेहरान में, केंद्रीय विद्यालय संगठन सर्वोपरि संगठन है ज्ञान में। चलो बात करते हैं संगठन के मिशन की, 'तत् त्वं पूषन् अपावृणु' ध्येय लेकर संगठन के विजन की। विद्यालयी शिक्षा को उत्कृष्टता के शिखर पर पहुंचाना है, शिक्षा के क्षेत्र में नए-नए प्रयोग और नवाचार को बढ़ाना है। राष्ट्रीय एकता और भारतीयता की भावना को विकसित करना है , छात्रों की प्रतिभा, उत्साह और रचनात्मकता को पोषित करना है। तमसो मा ज्योतिर्गमय के साथ तक्षशिला और नालंदा का इतिहास दोहराना है, भारत का स्वर्णिम गौरव केंद्रीय विद्यालय को लाना है। आओ इस 62वें स्थापना दिवस पर हम करते हैं ये प्रण, शिक्षा, ज्ञान – विज्ञान से उजला हो भारत का कण कण। ©Deepali Singh Chauhan

#Book  Unsplash 15 दिसंबर 1963 में हुआ था गठन,
सेंट्रल स्कूल के नाम से शुरू हुआ था संगठन।
20 रेजिमेंटल विद्यालय बने थे देने को शिक्षा,
उनके बच्चों को जो करते हैं देश की सुरक्षा।
शिक्षा मंत्रालय की और से देश को मिला वरदान था,
1965 को संगठन को मिला नया नाम था।


ज्ञान की रोशनी लेकर फैलाया उजियारा,
देश से विदेश तक बढ़ा संगठन हमारा।
देश को 1,253 विद्यालयों की मिली हुई है सौगात,
जहां ज्ञान विज्ञान से चमकता  भविष्य प्रभात ।
विदेश में विद्यालय हैं काठमांडू, मॉस्को और तेहरान में,
केंद्रीय विद्यालय संगठन सर्वोपरि संगठन है ज्ञान में।

चलो बात करते हैं संगठन के मिशन की,
 'तत् त्वं पूषन् अपावृणु' ध्येय लेकर संगठन के विजन की।
विद्यालयी शिक्षा को उत्कृष्टता के शिखर पर पहुंचाना है,
शिक्षा के क्षेत्र में नए-नए प्रयोग और नवाचार को बढ़ाना है।
राष्ट्रीय एकता और भारतीयता की भावना को विकसित करना है ,
छात्रों की प्रतिभा, उत्साह और रचनात्मकता को पोषित करना है।
तमसो मा ज्योतिर्गमय के साथ तक्षशिला और नालंदा का इतिहास दोहराना है,
भारत का स्वर्णिम गौरव केंद्रीय विद्यालय को लाना है।

  आओ इस 62वें स्थापना दिवस पर हम करते हैं ये प्रण,
शिक्षा, ज्ञान – विज्ञान से उजला हो  भारत का कण कण।

©Deepali Singh Chauhan

#Book Kendriya Vidyalaya Sangathan ka Safar

14 Love

daru chodne ka naya tarika

144 View

कई दिन हुये, उस रास्ते से गुजरे जो तुम तक जाती थी। सुना है, रास्ते के पेड़ सूख गये, हाँ सूखना ही था उनको... मुहब्बत जो कि थी बहारों से, बहार चली गयी और रह गया पीछे ठूंठ। हम भी तो ऐसे ही हैं, ये घाट, ये गलियाँ सब बेकार... शहर बनारस अब रास नहीं आता। कुछ छूट गया या फिर छोड़ दिया, यह सवाल आजतक सवाल ही है.... घर के एक कोने में हमारा कमरा है जिसके रंग अब फीके हो चुके हैं। दिल थम सा गया है। शायद धड़कन मद्धम-सी हो रही है, तुम समझी नहीं... कुछ ठहर गया और हम बेपरवाह चलते रहे, न जाने कब अकेले हुये पता न चला। निदा फ़ाजली ने कहा था 'रोज जीता हुआ, रोज मरता हुआ; अपनी ही लाश का खुद मज़ार आदमी', ससुरी किस्मत ने अपने दिल पर ले लिया। सांस चलना ही अगर जिन्दा रहना होता तो फिर मुहब्बत की जरूरत न थी.... शहर की आब-ओ-हवा बदल गयी पर हम अब भी वहीं हैं, तनहा, अकेले, एकदम अंधेरे में.... वहीं जहाँ तुम हमें छोड़ गयी। ❤️ 'सोच' ©मलंग

#naya  कई दिन हुये, उस रास्ते से गुजरे जो तुम तक जाती थी। सुना है, रास्ते के पेड़ सूख गये, हाँ सूखना ही था उनको... मुहब्बत जो कि थी बहारों से, बहार चली गयी और रह गया पीछे ठूंठ। 
हम भी तो ऐसे ही हैं, ये घाट, ये गलियाँ सब बेकार... शहर बनारस अब रास नहीं आता। कुछ छूट गया या फिर छोड़ दिया, यह सवाल आजतक सवाल ही है.... 
घर के एक कोने में हमारा कमरा है जिसके रंग अब फीके हो चुके हैं। दिल थम सा गया है। शायद धड़कन मद्धम-सी हो रही है, तुम समझी नहीं...
कुछ ठहर गया और हम बेपरवाह चलते रहे, न जाने कब अकेले हुये पता न चला। निदा फ़ाजली ने कहा था 'रोज जीता हुआ, रोज मरता हुआ; अपनी ही लाश का खुद मज़ार आदमी', ससुरी किस्मत ने अपने दिल पर ले लिया। सांस चलना ही अगर जिन्दा रहना होता तो फिर मुहब्बत की जरूरत न थी....
शहर की आब-ओ-हवा बदल गयी पर हम अब भी वहीं हैं, तनहा, अकेले, एकदम अंधेरे में.... वहीं जहाँ तुम हमें छोड़ गयी। ❤️

'सोच'

©मलंग

#naya

15 Love

White Girna inse hota hai jo chalte hai🌟 💪 baitho mat🌟 💪 phir se utho✨✨ ©Lokansh sir

#sad_quotes #Quotes  White Girna inse hota hai jo chalte hai🌟 💪 
baitho mat🌟 💪 phir se utho✨✨

©Lokansh sir

#sad_quotes life ka safar

7 Love

Unsplash 15 दिसंबर 1963 में हुआ था गठन, सेंट्रल स्कूल के नाम से शुरू हुआ था संगठन। 20 रेजिमेंटल विद्यालय बने थे देने को शिक्षा, उनके बच्चों को जो करते हैं देश की सुरक्षा। शिक्षा मंत्रालय की और से देश को मिला वरदान था, 1965 को संगठन को मिला नया नाम था। ज्ञान की रोशनी लेकर फैलाया उजियारा, देश से विदेश तक बढ़ा संगठन हमारा। देश को 1,253 विद्यालयों की मिली हुई है सौगात, जहां ज्ञान विज्ञान से चमकता भविष्य प्रभात । विदेश में विद्यालय हैं काठमांडू, मॉस्को और तेहरान में, केंद्रीय विद्यालय संगठन सर्वोपरि संगठन है ज्ञान में। चलो बात करते हैं संगठन के मिशन की, 'तत् त्वं पूषन् अपावृणु' ध्येय लेकर संगठन के विजन की। विद्यालयी शिक्षा को उत्कृष्टता के शिखर पर पहुंचाना है, शिक्षा के क्षेत्र में नए-नए प्रयोग और नवाचार को बढ़ाना है। राष्ट्रीय एकता और भारतीयता की भावना को विकसित करना है , छात्रों की प्रतिभा, उत्साह और रचनात्मकता को पोषित करना है। तमसो मा ज्योतिर्गमय के साथ तक्षशिला और नालंदा का इतिहास दोहराना है, भारत का स्वर्णिम गौरव केंद्रीय विद्यालय को लाना है। आओ इस 62वें स्थापना दिवस पर हम करते हैं ये प्रण, शिक्षा, ज्ञान – विज्ञान से उजला हो भारत का कण कण। ©Deepali Singh Chauhan

#Book  Unsplash 15 दिसंबर 1963 में हुआ था गठन,
सेंट्रल स्कूल के नाम से शुरू हुआ था संगठन।
20 रेजिमेंटल विद्यालय बने थे देने को शिक्षा,
उनके बच्चों को जो करते हैं देश की सुरक्षा।
शिक्षा मंत्रालय की और से देश को मिला वरदान था,
1965 को संगठन को मिला नया नाम था।


ज्ञान की रोशनी लेकर फैलाया उजियारा,
देश से विदेश तक बढ़ा संगठन हमारा।
देश को 1,253 विद्यालयों की मिली हुई है सौगात,
जहां ज्ञान विज्ञान से चमकता  भविष्य प्रभात ।
विदेश में विद्यालय हैं काठमांडू, मॉस्को और तेहरान में,
केंद्रीय विद्यालय संगठन सर्वोपरि संगठन है ज्ञान में।

चलो बात करते हैं संगठन के मिशन की,
 'तत् त्वं पूषन् अपावृणु' ध्येय लेकर संगठन के विजन की।
विद्यालयी शिक्षा को उत्कृष्टता के शिखर पर पहुंचाना है,
शिक्षा के क्षेत्र में नए-नए प्रयोग और नवाचार को बढ़ाना है।
राष्ट्रीय एकता और भारतीयता की भावना को विकसित करना है ,
छात्रों की प्रतिभा, उत्साह और रचनात्मकता को पोषित करना है।
तमसो मा ज्योतिर्गमय के साथ तक्षशिला और नालंदा का इतिहास दोहराना है,
भारत का स्वर्णिम गौरव केंद्रीय विद्यालय को लाना है।

  आओ इस 62वें स्थापना दिवस पर हम करते हैं ये प्रण,
शिक्षा, ज्ञान – विज्ञान से उजला हो  भारत का कण कण।

©Deepali Singh Chauhan

#Book Kendriya Vidyalaya Sangathan ka Safar

14 Love

daru chodne ka naya tarika

144 View

कई दिन हुये, उस रास्ते से गुजरे जो तुम तक जाती थी। सुना है, रास्ते के पेड़ सूख गये, हाँ सूखना ही था उनको... मुहब्बत जो कि थी बहारों से, बहार चली गयी और रह गया पीछे ठूंठ। हम भी तो ऐसे ही हैं, ये घाट, ये गलियाँ सब बेकार... शहर बनारस अब रास नहीं आता। कुछ छूट गया या फिर छोड़ दिया, यह सवाल आजतक सवाल ही है.... घर के एक कोने में हमारा कमरा है जिसके रंग अब फीके हो चुके हैं। दिल थम सा गया है। शायद धड़कन मद्धम-सी हो रही है, तुम समझी नहीं... कुछ ठहर गया और हम बेपरवाह चलते रहे, न जाने कब अकेले हुये पता न चला। निदा फ़ाजली ने कहा था 'रोज जीता हुआ, रोज मरता हुआ; अपनी ही लाश का खुद मज़ार आदमी', ससुरी किस्मत ने अपने दिल पर ले लिया। सांस चलना ही अगर जिन्दा रहना होता तो फिर मुहब्बत की जरूरत न थी.... शहर की आब-ओ-हवा बदल गयी पर हम अब भी वहीं हैं, तनहा, अकेले, एकदम अंधेरे में.... वहीं जहाँ तुम हमें छोड़ गयी। ❤️ 'सोच' ©मलंग

#naya  कई दिन हुये, उस रास्ते से गुजरे जो तुम तक जाती थी। सुना है, रास्ते के पेड़ सूख गये, हाँ सूखना ही था उनको... मुहब्बत जो कि थी बहारों से, बहार चली गयी और रह गया पीछे ठूंठ। 
हम भी तो ऐसे ही हैं, ये घाट, ये गलियाँ सब बेकार... शहर बनारस अब रास नहीं आता। कुछ छूट गया या फिर छोड़ दिया, यह सवाल आजतक सवाल ही है.... 
घर के एक कोने में हमारा कमरा है जिसके रंग अब फीके हो चुके हैं। दिल थम सा गया है। शायद धड़कन मद्धम-सी हो रही है, तुम समझी नहीं...
कुछ ठहर गया और हम बेपरवाह चलते रहे, न जाने कब अकेले हुये पता न चला। निदा फ़ाजली ने कहा था 'रोज जीता हुआ, रोज मरता हुआ; अपनी ही लाश का खुद मज़ार आदमी', ससुरी किस्मत ने अपने दिल पर ले लिया। सांस चलना ही अगर जिन्दा रहना होता तो फिर मुहब्बत की जरूरत न थी....
शहर की आब-ओ-हवा बदल गयी पर हम अब भी वहीं हैं, तनहा, अकेले, एकदम अंधेरे में.... वहीं जहाँ तुम हमें छोड़ गयी। ❤️

'सोच'

©मलंग

#naya

15 Love

Trending Topic