Village Life अकेले बसर करनी है ये लंबी ज़िंदगी,
यहाँ अब किसका इंतज़ार है।
रिश्तों की गरमाहट बराबर नहीं होती,
कहीं धूप है, तो कहीं छांव है।
चल पड़ा हूँ वापस पगडंडी पर,
बस्ती से दूर, एक छोटा सा गांव है।
जहाँ सुकून की मिट्टी से गंध उठती है,
और सपनों का आकाश साफ़ है।
ढूंढ रहा है हर कोई शहर में बसेरा,
पर वहाँ भी ज़िंदगी कहाँ आज़ाद है।
शोर में खो जाती है पहचान अपनी,
बस भीड़ में रह जाता एक फरियाद है।
लौट आओ अपनों के बीच, अभी वक्त है,
ज़िंदगी छोटी है, किसे सरोकार है।
रिश्तों की गरमाहट को महसूस कर लो,
फिर न कह सकेगा दिल, ये जो अंगार है।
शहर के शोर में सब कुछ खो जाता है,
पर दिल सुकून तो अपनों में ही पाता है।
थोड़ा ठहरो, जरा संभालो इन पलकों को,
क्योंकि यादें ही अंत में हमारा संसार हैंl
©theABHAYSINGH_BIPIN
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