White चारों तरफ अजीब आलम हादसों में पल रही है जिंदगी,
फूलों के शक्ल में अंगारों पर चल रही है जिंदगी.
आदमी खूंखार वहसी हो गए हैं इस जमाने में,
दूध साँपों को पिलाकर खुद तड़प रही है जिंदगी.
हमारी कौम ने जो बाग सींचे थे अपना लहू देकर,
उन्हीं बाग के कलियों का मसलना देख रही है जिंदगी.
उजड रहे हैं रोज गुलशन अब कोई नजारा न रहा,
तलवारों खंजरों रूपी दरिंदों से लुट रही है जिंदगी.
अब तो यातनाओं के अंधेरों में ही होता है सफर,
लुट रही बहन-बेटियाँ असहाय बन गयी है जिंदगी.
हर पल सहमी-सहमी है घर की आबरू बहन-बेटियाँ,
हर तरफ हैवानियत का आलम नीलम ही रही है जिंदगी.
चुभती है कविता ग़ज़ल सुनाने का न रहा अब हौसला,
अब तो इस जंगल राज में कत्लगाह बन गयी है जिन्दगी.
©Deepubodhi
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